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प्रामिः
९ शतके | उद्देश
॥७८१॥
A अधःसप्तम पृथिवीमां होय. (ए त्रीजी रीते) ३-१ ना छ विकल्प थया. ए प्रमाणे रत्नप्रभानी साथे अढार विकल्प थाय छे.)१ व्याख्या
अथवा एक शर्कराप्रभामां अने त्रण वालुकाप्रभामां होय. ए प्रमाणे जेम रत्नप्रभानो उपरनी नरकपृथिवीओ साथे संचार (योग) कों|
| तेम शर्कराप्रभानो पण उपरनी नरकपृथिवीओ साथे संचार करवो. एवी रीते एक एक नरक पृथिवीओ साथे योग करवो. यावत् | ७८१॥
| अथवा त्रण तमामां अने एक अधःसप्तम नरकमां होय. । अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए दो वालु यप्पभाए होजा अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकर दो |पंक होजा एवं जाव एगे रयणप्पभाए एगे सक्कर दो अहसत्तमाए होजा ५ अहवा एगे रयण दो सकर० एगे वालुयप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे रयण. दो सक्कर० एगे अहेसत्तमाए होजा १० अहवा दो रयण. एगे
सक्कर० एगे वालुयप्पभाए होजा, एवं जाव अहवा दो रयण० एगे सकर० एगे अहेसत्तमाए होजा १५ अहवा पणे | रयण पणे वालुय० दो पंकप्पभार होजा एवं जाव अहवा एगे रयणपभाए एगे वालुय दो अहेसत्तमाए होज्जा ४ एवं एएणं गमएणं जहा तिण्हं तियजोगो तहा भाणियव्वो जाव अहवा दो धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहे. सत्तमाए होजा १०५ | १ अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने बे वालुकाप्रभामां होय. २ अथवा एक रत्नप्रभा एक शर्कराप्रभामां अने दाने पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ५ एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने बे अधःसप्तम नरकपृथिवीमां होय. (ए रीते १
१-२ ना पांच विकल्प थया.) १ अथवा एक रत्नप्रभामां वे शर्कराप्रभामां अने एक वालुकाप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ५ एक
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