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| संठाणपरिणयावि, जे पज्जत्ता सुहमपुढवि एवं चेव, एवं जहाणुपुब्बीए जस्स जब इंदियाणि तस्स तत्तियाणि व्याख्याभाणियव्वाणि जाव जे पज्जत्ता सम्बट्टसिद्धअणुत्तरजावदेवपंचिंदियसोइंदिय जाव फासिंदियपयोगपरिणयावि
८ शतके प्रज्ञप्तिः दाते वन्नओ कालवन्नपरिणयावि जाव आययसंठाणपरिणयावि ८॥
उद्देशः१ ॥५८८॥ * जे पुद्गलो अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियस्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत छे ते वर्णथी कालावर्णे परिणत छे, यावत् आयतसं- ॥५८८॥
स्थानरूपे पण परिणत छे. जे पुद्गलो पर्याप्तसक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रियस्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत छे ते पण ए प्रमाणे जाणवा. ए ४ प्रकारे सर्व अनुक्रमे जाणवू, जेने जेटली इन्द्रियो होय तेने तेटली कहेवी; यावत् जे पुद्गलो पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकदेवपंचेन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत छे ते वर्णथी कालावणे परिणत छे, यावत् आयतसंस्थानपणे परिणत छे [६८]
जे अपजत्ता सुहमपुढविकाइयएगिदियओरालियतेयाकम्माफासिंदियपयोगपरिणया ते वन्नओ कालवनपरिणयावि जाव आयतसंठायप्प०, जे पज्जत्ता सुहुमपुढवि० एवं चेव, एवं जहाणुपुव्वीए जस्स जइ सरीराणि इंदियाणि य तस्स तइ भाणियब्वाणि जाव जे पज्जत्ता सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदियवेउब्वियतेयाकम्मा सोइंदिय जाव फासिंदियपयोगपरि० ते वन्नओ कालवनपरि० जाव आययसंठाणपरिणयावि, | एवं एए नव दंडगा ९॥ (सूत्र ३०९)॥
जे पुद्गलो अपर्याप्तमूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रिय औदारिक, तैजस अने कार्मण, अने स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत ते वर्णथी। कालावणे पण परिणत छे, यावत् आयतसंस्थानपणे पण परिणत छे. जे पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिक-[एकेन्द्रिय औदारिक, तैजस अने
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