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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥७३८||
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जस्स नाणावरणिजं तस्स वेयणिज्जं नियमा अस्थि, जस्स पुण बेयणिज्जं तस्स णाणावरणिज्जं सिय अस्थि सिय नत्थि । जस्स णं भंते ! नाणावरणिजं तस्स मोहणिज्जं जस्स मोहणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं ?, गोपमा ! | जस्स नाणावर णिज्जं तस्स मोहणिज्जं सिय अस्थि सिय नत्थि, जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं नियमा अस्थि । जस्स णं भंते! णाणावरणिज्जं तस्स आउयं एवं जहा वेयणिज्रेण समं भणियं तहा आउएणवि सम भाणियव्वं, एवं नामेणवि, एवं गोएणवि समं, अंतराइएण समं जहा दरिसणावरणिजेण समं तहेव नियमा परोपरं भाणियव्वाणि १ ॥
[प्र० ] हे भगवन् ! जे जीवने ज्ञानावरणीय कर्म छे तेने शुं दर्शनावरणीय कर्म छे, जेने दर्शनावरणीय कर्म छे तेने शुं ज्ञानावरणीय कर्म छे ? [ उ० ] हे गौतम! जेने ज्ञानावरणीय छे तेने अवश्य दर्शनावरणीय होय छे, जेने दर्शनावरणीय छे तेने पण अवश्य ज्ञानावरणीय होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! जेने ज्ञानावरणीय हे, तेने शुं वेदनीय होय छे, जेने वेदनीय छेतेने ज्ञानावरणीय होय छे ? [ उ०] हे गौतम! जेने ज्ञानावरणीय कर्म छे तेने अवश्य वेदनीय होय छे, अने जेने वेदनीय छे तेने ज्ञानावरणीय कर्म कदाच होय अने कदाच न होय. [प्र० ] हे भगवन्! जेने ज्ञानावरणीय छे तेने शुं मोहनीय छे, जेने मोहनीय छे तेने ज्ञानावरणीय छे ? [उ० ] हे गौतम! जेने ज्ञानावरणीय छे तेने मोहनीय कर्म कदाच होय अने कदाच न होय. पण जेने मोहनीय छे तेने अवश्य ज्ञानावरणीय कर्म होय छे. [ प्र० ] हे भगवन् ! जेने ज्ञानावरणीय कर्म छे तेने शुं आयुष् कर्म छे ? - इत्यदि [ उ० ] जेम वेदनीय कर्म साथै कां तेम आयुष्नी साधे पण कहे. ए प्रमाणे नाम अने गोत्र कर्मनी साथे पण जाणवुं. जेम दर्शनावरणीय साथै
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८ शतके
उद्देशः १० ॥७३८ ॥