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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७०३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतोमुहुत्तं, पुढविकाइयए गिंदियपुच्छा गो० ! सव्वबंधंतरं जहेब एगिंदियस्स तहेव भाणियव्वं, देसबंधंतरं जह नेणं एवं समयं उक्कोसेणं तिन्नि समया जहा पुढविक्काइयाणं, एवं जाव चउरिंदियाणं वाउक्कायवज्जाणं, नवरं सव्वबंधतरं उक्कोसेणं जा जस्स द्विती सा समग्राहिया कायव्वा, वाउक्काइगाणं सव्वबंधंतरं जहनेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं उक्कोसेणं तिन्नि वाससहस्साई समयाहियाई, देसबंधंतरं जहनेणं एवं समयं उक्कोसेण अंतोमुहुत्त, पंचिंदियतिरिक्खजोणिय ओरालिय पुच्छा, सव्वबंधंतरं जहनेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं उक्कोसेर्ण पुग्वकोडी समयाहिया, देसबंधंतरं जहा एगिंदियाणं तहा पंचिदियतिरिक्खजो०, एवं मणुस्साणवि निरबसेसं भाणियन्वं जाव उक्कोसेण अंतोमुहुत्तं ॥ जीवस्म णं भंते ! एगिंदियत्ते णोएगिंदियते पुणरवि एगिंदियत्ते एगिंदियओरालिब सरीरप्पओगबंधंतरं कालओ केषश्चिरं होइ?, गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं दो खुड्डागभवरगहणाई तिसमयऊणाई उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमन्भहियाई, देसबंधंतरं जहनेणं खुड्डागं भवग्गहृणं समयाहियं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमम्भहियाई, [प्र० ] हे भगवन् ! औदारिक शरीरना बन्धनुं अन्तर कालथी क्यांसुधी होय ? [उ०] हे गौतम! सर्वत्रन्धनुं अन्तर जघन्यथी त्रण समय न्यून क्षुल्लक भवग्रहण पर्यन्त छे, अने उत्कृष्टथी समयाधिक पूर्वकोटी अने तेत्रोश सागरोपम छे. अने देश बन्धनुं अन्तर जघन्थी एक समय, अने उत्कृष्टथी त्रण समय अधिक तेत्री सागरोपम छे. [प्र० ] एकेन्द्रिय औदारिकशरीरसंबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! तेओना सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी त्रण समय न्यून क्षुल्लक भव पर्यन्त अने उत्कृष्टथी समयाधिक बावशिहजार वर्ष सुधी For Private and Personal Use Only ८ शतके उद्देशः ९ ॥७०३ ॥
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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