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उदएणं, गोयमा! वीरियसजोगसहव्वयाए पमादपच्चया जाव आउयं च पडुच्च मणुस्सपंचिंदियओरालियव्याख्या- सरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे,
८ शतके प्रज्ञप्तिः ला [प्र.] हे भगवन् ! एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध केटला प्रकारनो कयो के ? [उ०] हे गौतम! पांच प्रकारनो को
| उद्देशः९ ॥७००॥
| छे, ते आ प्रमाणे-पृथिवीकायिकए केन्द्रियओदारिकशरीरप्रयोगबन्ध; ए प्रमाणे ए अभिलापथी जेम' अवगाहनासंस्थान' पदमा | औदारिक शरीरनो भेद कह्यो छे तेम अहीं कहेवो; यावत् पर्याप्तगर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध अने अपर्याप्तगर्भज-18 | मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारीकशरीरप्रयोगवन्धः [प्र०] हे भगवन् ! औदारिकशरीरप्रयोगवन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ? [उ.] हे गौतम ! जीवनी सवीर्यता, सयोगता अने सद्र्व्यताथी, प्रमादहेतुथी, कर्म, योग, (काययोग) भव अने आयुष्यने आश्रयी औदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी औदारिकशरीरप्रयोगवन्ध थाय छे. [प्र०] हे भगवन ! एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ? [उ.] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. पृथिवीकायिकएकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध ए प्रमाणे जाणवो. ए प्रमाणे यावद् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध, तथा बेइन्द्रिय, त्रींद्रिय अने चउरिन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! पंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय ? [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवं.
[प्र०] हे भगवन् ! मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ? [उ.] हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता|8| है अने सव्यताथी, तेम प्रमादहेतुथी, यावत् आयुष्यने आश्रयी मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी मनुष्यपंचेभन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध थाय के.
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