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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६९७॥
८ शतके उद्देशः९ ॥६९७॥
| पुष्करिणी, दीपिका, गुंजालिका, सरोवरो, सरोवरनी श्रेणि, मोटा सरोवरनी पंक्ति, बिलनी श्रेणि, देवकुल, सभा, परब, स्तूप,
खाइओ. परिघो, किल्लाओ, कांगराओ. चरिको, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, शरण, लेण (गृह विशेष) हाटो, शृंगाटकाकारमार्ग, | त्रिकमार्ग, चतुष्कमार्ग, चत्वरमार्ग, चतुर्मुखमार्ग, अने राजमार्गादिनो चुनाद्वारा, कचराद्वारा अने श्लेषना (वचलेपना) समुच्चयवडे जे बंध थाय छे ते समुच्चयबन्ध. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्येयकाल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे समुच्चयबन्ध कह्यो. [प्र०] संहननबन्ध केवा प्रकारनो कह्यो छ ? [उ०] संहननबन्ध वे प्रकारनो कयो हे; ते आ प्रमाणे-देशसंहननबन्ध अने सर्वसंहननबन्ध, [प्र०] हे भगवन् ! देशसंहनन बन्ध केवा प्रकारनो के ? [उ०] हे गौतम! गाडा, रथ, यान (नाना गाडा) युग्यवाहन गिल्लि (हाथीनी अंबाडी), थिल्लि (पलाण); शिविका, अने स्यन्दमानी (पुरुषप्रमाण वाहनविशेष), तेमज लोढी. लोढाना कडाया, कडछा. आसन, शयन, स्तंभो, भांड (माटीनां वासण) पात्र अने नाना प्रकारना उपकरण-इत्यादि पदार्थोनो जे संबन्ध थाय छे ते देश संहननबन्ध छे. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्येय काल सुधी रहे है. ए प्रमाणे देशसंहनन बन्ध कयो.
से किं तं सव्वसाहणणाबंधे !, सव्वसाहणणाबंधे से णं खीरोदगमाईणं, सेत्तं सव्वसाहणणाबंधे, सेत्तं साहणणाबंधे, सेत्तं अल्लियावणबंधे॥से कितं सरीरबंधे?, मरीरबंधे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-पुवप्पओगपञ्चइए य | पडुप्पन्नपओगपञ्चइए य, से किं तं पुवप्पयोगपच्चइए?,पृथ्वप्पओगपञ्चइए जन्नं नेरइयाइयाणं संमारवत्थामव्वजीवाणं तत्थ २ तेसु २ कारणेसु ममोहणमाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पजइ, सेत्तं पुवापयोगपञ्चइग, से किं तं पडप्पन्नप्पयोगपच्चइए?, २ जन्नं केवलनाणिस्स अणगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहगस्स ताओ समुग्घायाओ
CAMARCRACACARE
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