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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६७५॥
८ शतके उद्देशः८ ॥६७५॥
उद्देशक ८. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी-गुरूण भंते ! पडुच्च कति पडिणीया पण्णता?, गोयमा! तओ पडिणीया पण्णत्ता ?, तंजहा-आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए थेरपडिणीए ॥ गई णं भंते ! पडुश्च कति पडिणीया पण्णत्ता ?, गोयमा! तओ पडिणीया पण्णत्ता, तंजहा-इहलोगपडिणीए परलोगपडिणीए दुहओलोगपडिणीए।। समूहष्ण भंते! पडुच्च कति पडिणीया पण्णत्ता?, गोयमा! तओ पडिणीया पण्णत्ता,तंजहा-कुलपडिणीए गणपडिणीए संघपडिणीए। अणुकंप पडुच्च पुच्छा,गोयमा! तओ पडिणीया पण्णत्ता, तंजहा-तवस्सिपडिणीए गिलाणपडिणीए सेहपडिणीए । सुयण्णं भंते ! पडुच्च पुच्छा, गोयमा! तओ पडिणीया पण्णत्ता. तंजहा-सुत्तपडिणीए
अत्थपडिणीप तदुभयपडिणीए । भावं णं भंते ! पडुच्च पुच्छा, गोयमा! तओ पडिणीया पन्नत्ता, तंजहा| नाणपडिणीए सणपडिणीए चरित्तपडिणीए ॥ (सूत्रं ३३८)॥
राजगृह नगरमां (गौतमे) यावत् ए प्रमाणे काके हे भगवन् ! गुरुओने आश्रयी केटला प्रत्यनीको (द्वेपी) कह्या है ? [उ०] हे गौतम! त्रण प्रत्यनीको कह्या छे, ते आ प्रमाणे-आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्यायप्रत्यनीक अने स्थविरप्रत्यनीक. [प्र०] हे भगवन् ! गतिने आश्रयी केटला प्रत्यनीको कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! त्रण प्रत्यनीको कया छे. ते आ प्रमाणे-इहलोकप्रत्यनीक परलोकप्रत्यनीक अने उभयलोकप्रत्यनीक. [प्र०] हे भगवन् ! समूहने आश्रयी केटला प्रत्यनीको कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! त्रण प्रत्यनीको कह्या छे, ते आ प्रमाणे-कुलप्रत्यनीक, मणप्रत्यनीक अने संघप्रत्पनीक. [प्र.] हे भगवन् ! अनुकंपाने आश्रयी प्रश्न; अर्थात्
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