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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥४२०॥
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[अ०] हा, मोटी वेदनावाळा हे [प्र० ] हे भगवन् ! ते छट्ठी अने सातमी पृथिवीमां रहेनारा नैरयिको श्रमण निन्यो करतां मोटी निर्जरावाळा छे ? [ उ० ] हे गौतम! अर्थ समर्थ नथी अर्थात् तेम नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! ते एम शा हेतुथी कहेवाय छे के, जे महावेदनावाळो छे यावत् प्रशस्त निर्जरावाळो छे ?
गोमा ! से जहानामए दुवे वत्था सिया, एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते, एगे वत्थे खंजणरागरत्ते, एएसि णं गोयमा ! दोन्हं वत्थाणं कयरे वत्थे दुधोयतराए चैव दुवामतराए चेव दुपरिकम्मतराए चेव ? कयरे वा वत्थे सुधोयतराए चैव सुवामतराए चेव सुपरिकम्मतराए चेव १, जे वा से वत्थे कद्दमरागरत्ते जे वा सेवत्थे खंजणरागरत्ते, भगवं ! तत्थ णं जे से वत्थे कद्दमरागरत्ते से णं वत्थे दुधोयतराए चेव दुवामतराए चैव दुष्परिकम्मतराए चेब, एवामेव गोयमा ! नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकयाई चिक्कणीकमाई (अ) सिढिलीकयाई खिलीभूयाई भवंति संपगाढंपि य णं ते वेदणं वेदेमाणा णो महानिजरा णो महापज्जबसाणा भवंति से जहा वा केइ पुरिसे अहिगरणं आकोडेमाणे महया २ सद्देणं महया २ घोसेणं महया २ परंपराघाएणं णो संचाए तीसे अहिगरणीए केई अहाबायरे पोग्गले परिसाडित्तए, एवामेव गोयमा! नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकयाई जाव नो महापज्ज वसाणाई भवंति, भगवं ! तत्थ जे से वत्थे खंजणरागरत्ते से णं वत्थे सुधोयतराए चैव सुवामतराए चैव सुपरिकम्मतराए चेव, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंधाणं अहाबायराई कम्माई सिढिलीकयाई निट्टियाई कम्माई विप्परिणामियाई विप्पामेव विद्वत्थाई भवंति, जावतियं तावतियंपि णं ते वेदणं वेदेमाणे
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६ शतके उद्देशः १
॥४२०॥