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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४११॥ बाकीना बधा जीवो सोपचय पण हे, सापचय पण ने, सोपचय अने सापचय पण के, निरुपचय अने निरपचय पण हे. जघन्ये |एक समय अने उत्कृष्टे आवलिकानो असंख्य भाग छ, अवस्थितोमा व्युत्क्रान्तिकाल कहेवो. [प्र०] हे भगवन् ! सिद्धो केटला काळ सुधी सोपचय छे. [उ०] हे गौतम! जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे आठ समय सुधी सिद्धो सोपचय छे. [प्र०] हे भगवन् ! तेओ सिद्धो केटला काळ सुधी निरुपचय अने निरपचय के ? [उ०] हे गौतम ! जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्ट छ मास सुधी सिद्धो | निरुपचय अने निरपचय छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के. एम कही यावत् विहरे छे. ॥ २२१॥ भगवत् मुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना पांचमा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. शतके | उद्देशः९ ॥४१॥ SAGARMATC+: उद्देशक ९. आ बधो अर्थनो समूह भगवंत गौतमे भगवंत महावीरने घणे भागे राजगृह नगरमा पूछयो हतो, कारण के, भगवंत महावीरनो घणो विहार राजगृहमां थयेलो हे माटे राजगृहादिना स्वरूपना निर्णय परत्वे आ नवमा उद्देशकमां मूत्रनो विस्तार कहे हे. तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी-किमिदं भंते ! नगरं रायगिहंति पवुच्चइ ?, किं पुढवी नगरं रायगिहंति पवुच्चड, आऊ नगरं रायगिहंति पवुच्चइ ? जाव वणस्सई ?, जहा एयणुद्देसए पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं बत्तब्वया तहा भाणियब्वं जाव मचित्ताचित्तमीसयाई दवाई नगरं रायगिहंति पवुच्चइ ?, गोयमा! For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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