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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
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उद्देशक ७.
छट्ठा उद्देशकाला मां कर्मप्रगलनी निर्जरा कही छे अने ए निर्जरा चलनरूप ले माटे हवे सातमा उद्देशक्रमां पुद्गलोनी चलनक्रियानो अधिकार है.
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परमाणुपोग्गले णं भंते! एयति वैयति जाब तं तं भावं परिणमति ?, गोयमा ! सिय एयति वैयति जाय परिणमति, सिय णो एयति जाव णो परिणमति । दुपदेसिए णं भंते ! खंधे एयति जाव परिणम ?, गोयमा ! सिय एयति जाव परिणमति, सिय णो एयति जाव णो परिणमति, सिय देसे एयति, देसे नो एयति । तिप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति० १, गोयमा ! सिय एयति, सिय नो एयति, सिय देसे एयति नो देसो एयति, सिय देसे एयति नो देसा एयंति, सिय देसा एयंति नो देसे एति । उप्पएसिए णं भंते! खंधे एयति ? गोयमा ! सिय एयति, सिय नो एयति, सिय देसे एयति णो देसे एयति, सिय देसे एयति णो देसा एयंति, सिय देसा एयंति नो देसे एयति, सिय देसा एयंति नो देसा एयति, जहा चउष्पदेसिओ तहा पंचपदेसिओ तहा जाव अणतपदेसिओ ।। ( सू २१२ ) ।।
[प्र० ] हे भगवन् ! परमाणु पुद्गल कंपे, विशेष कंपे यावत् ते ते भावे परिणमे ? [अ०] है गौतम ! कदाच कंपे, विशेष कंपे यावत् परिणमे अने कदाच न कंपे यावत् न परिणगे. [प्र० ] हे भगवन् ! वे प्रदेशनो स्कंध कंपे यावत् - परिणमे ? [अ०] हे
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५ शतके
उद्देशः ७
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