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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३७९॥
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पढमचउत्थाणं एक्को गमो, वितियतइयाणं एक्को गमो ॥ अगणिकाए णं भंते ! अहुणोज्जलिते समाणे महाकम्म
५ शतके | तराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महावेदणतराए चेव भवति, अहे णं समए २ वोक्कसिजमाणे २ चरिमकालसमयंसि इंगालभूए मुम्मुरभूते छारियभूए तओ पच्छा अप्पकम्मतराए चेव
उद्देशः६ | अप्पकिरियतराए चेष अप्पासवतराए चेव अप्पवेदणतराए चेव भवति ?, हंता गोयमा ! अगणिकाए णं
॥३७९|| अणुज्जलिए समाणे तं चेव ।। (सूत्रं २०४)॥
[प्र०] हे भगवन् ! गृहपति-घरधणि-ने भांड यावत्-धन न मयं होय ( तो केम ? ) [उ०] ए रीते पण जेम उपनीत सोंपेल भांड-संबंधे का छे तेम समजबू-चोथो आलापक समजवो. 'जो धन उपनीत होय तो' जेम अनुपनीत भांड विषे ४ प्रथम आलापक कह्यो के तेम समजवू-प्रथम अने चतुर्थ आलापकनो समान गम समजबो अने बीजा जने त्रीजा आलापकनो समान!
गम समजवो. [प्र.] हे भगवन : हमणा जगवेलो अग्निकाय, महाकर्मवाळो, महाक्रियावाळो, महाआश्रववाळो, महावेदनावाळो, द होय छे, हवे ते अग्नि समये समये-क्षणे क्षणे-ओछो थतो होय, बुझातो होय अने नेल्ले क्षणे अंगरूप थयो, मुर्मुररूप थयो, भस्मरूप थियो त्यारबाद ते अग्नि अल्पकर्मवाळो, अल्पक्रियावाळो अल्पआश्रयवाळो अने अल्पवेदनावाळो थाय ? [उ०] हा, गौतम ! हमणा जगवेलो अग्निकाय तेज कहे ।। २०४ ॥
पुरिसे णं भंते ! धणुं परामुसह धणुं परामुसित्ता उसुं परामुसइ २ ठाणं ठाइ ठाणं ठिच्चा आयतकण्णाययं उसुंध करेति आययकन्नाययं उसुं करेत्ता उर्ल्ड वेहासं उसु उब्विहइ २ ततो गं से उसु उड्डू बेहासं उविहिप समाणे
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