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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३७७॥ ५ शतके उद्देशः६ ||३७७॥ किं आरंभिया किरिया कज्जइ परिग्गहिया. माया• अप०मिच्छा?, गोयमा! आरंभिया किरिया कन्जइ परि० माया. अपच०, मिच्छादसणकिरिया सिय कजइ सिय नो कजह ॥ अह से भडे अभिसमन्नागए भवति, तओ से पच्छा सब्बाओ ताओ पयणुई भवति ॥ गाहावतिस्स णं भंते ! तं भंडं विक्किणमाणस्स कतिए भंडे सातिजेजा, भंडे य से अणुवणीए सिया, गाहावतिस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजइ जाव मिच्छादसणकिरिया कजह? कइयस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजइ जाव मिच्छादसणकिरिया कजइ ?, गोयमा गाहावइस्म ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कज्जइ जाव अपचक्खाणिया, मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कन्जइ सिय नो कजइ, कतियस्स ण ताओ सव्वाओ पयणुईभवंति । गाहावतिस्स भंते ! भंड विकिणमाणस्म जाव भंडे से उवणीए सिया, कतियस्स ण भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जति ?, गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजति !, गोयमा! कइयस्स ताओ भंडाओ हेहिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कजति, मिच्छादसणकिरिया भयणाए, गाहावतिस्स णं ताओ सब्बाओ पयणुईभवति । [प्र०] हे भगवन् ! करियाणानो विक्रय-वेचाण-करतां कोई गृहस्थy कोइ माणस ते करियाणुं चोरी जाय तो हे भगवन् ! ते करियाणानुं गवेषण करनार ते गृहस्थने शुं आरंभिकी क्रिया लागे के परिग्रहिकी क्रिया लागे के मायग्रत्ययिकी क्रिया लागे के अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लागे के मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया लागे? [उ०] हे गौतम ! आरंभिकी, परिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी *%%%AHARAS For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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