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५ शतके उद्देश: ॥३७४||
| ते कया हेतुथी ? [उ०] हे गौतम ! जे नैरयिको करेलां कर्म प्रमाणे वेदना वेदे छे तेओ एवंभृत वेदना वेदे छे अने जे नैरयिको व्याख्या
3 करेलां कर्म प्रमाणे वेदना नथी वेदता तेओ अनेवंभूत वेदनाने वेदे छे ते हेतुथी एम कयु. ए प्रमाणे यावत् वैमानिक सुधीना प्रज्ञप्तिः
संसारमंडल विषे समजवान छे. ॥ २०१॥ ॥३७४॥ जंबुद्दीवेणं भंते! भारहे वासे इमीसे ओस. कइ कुलगरा होत्था ?, गोयमा ! सत्त, एवं तित्थयरा
तित्थयरमायरो पियरो० पढमा सिस्सिणीओ० चक्कवट्टीमायरो इत्थिरयणं बलदेवा वासुदेवा वासुदेवमायरो दूपियरो, एएसिं पडिसत्तू जहा समवाए परिवाडी तहा णेयब्वा, सेवं भंते २ जाव विहरइ ॥ (सूत्रं २०२)। पंचमसए पंचमुद्देसओ सम्मत्तो ॥५-५॥
[प्र.] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा आ भारत वर्षमा आ अवसर्पिणीना काळमां केटला कुलकरो थया. [उ०] हे गौतम ! सात कुलकरे थया, ए प्रमाणे तीर्थकरोनी माताओ, पिताओ, पहेली चेलीओ, चक्रवर्तीनी माताओ, स्त्रीरत्न, बलदेवो, वासुदेवो, वासुदेदेवनी माताओ, पिताओ, एओना प्रतिशत्रुओ प्रतिवासुदेवो वगेरे जे प्रमाणे 'समवाय' मूत्रमा नामनी परिपाटीमा छे ते प्रमाणे जाणवू. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही यावत् विहरे छे. ॥ २०२॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना पांचमा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
विमलवाहन, चक्षुमान् , यशोमान् , अभिचंद्र, प्रसेनजित् , मरुदेव अने नाभि. ए साते कुलकरोने (एक एकने एक) एम सात खीओ हती. VI तेनां नाम-चंद्रयशा, चंद्रकांता, मुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुकांता, श्रीकांता अने मरुदेवी.
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