SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥३४८॥ . लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते?, एवं नेगव्वं जाव लोगहिती लोगाणुभावे, सेवं भंते ! २ त्ति भगवं जाव विहरइ ।। (मूत्रं १८१)॥ पञ्चमशते द्वितीयः ॥५-२ ।। [प्र०] हे भगवन् ! लवणसमुद्रनो चकवाल विष्कंभ केटलो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम! ए प्रमाणे-पूर्व कह्या प्रमाणे जाणवू ए प्रमाणे यावत्-लोकस्थिति, लोकानुभाव, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे एम कही यावत्-विहरे छे. भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना पांचमा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ५ शतके उद्देशः३ ॥३४८॥ ROCCCCCASIAS उद्देशक ३. आगळना प्रकरणमां वायुकाय संबंधे चिंतन कयु छे अने हवे वनस्पतिकाय विगेरेना शरीर संबंधी चिंतन करतां जणावे छ के: अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमातिक्खंति भा० प० एवं प० से जहानामए जालगंठिया सिया आणुपुव्विगढिया अणंतरगढिया परंपरगढिया अन्नमन्नगढिया अन्नमन्नगुरुयत्ताए अन्नमन्नभारियत्ताए अन्नमन्नगुरुयसं| भारियत्ताए अण्णमण्णघडत्ताए जाव चिटुंति, एवामेव बहूणं जीवाणं बहूसु आजातिसयसहस्सेसु बहूई आउयसहस्साई आणुपुब्विगढियाइं जाव चिट्ठति, एगेऽविय णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पडिसंवेदयति, तंजहा-इहभवियाउयं च परभषियाउयं च, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ तं समयं परभ For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy