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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir ७ शतके उद्देशः१० ॥५६७॥ रांधवावडे शुद्ध-परिपक, अढार प्रकार ना दाळ शाकादि] व्यंजनोथी युक्त औषधमिश्रित भोजन करे, ते भोजन प्रारंभमा सारूं न व्याख्या- लागे, त्यार पछी ज्यारे ते अत्यंत परिणाम पामे त्यारे ते सुरूपपणे, सुवर्णपणे, यावत् सुखपणे वारंवार परिणमे छे, दुखपणे प्रज्ञप्ति धा | परिणाम पामतुं नथी. ए प्रमाणे हे कालोदायि ! जीवोने प्राणातिपातविरमण, यावत् परिग्रहविरमण, क्रोधनो त्याग यावत् मिथ्या॥५६॥ीदर्शनशल्यनो त्याग प्रारंभमा सारो न लगे, पण पछी ज्यारे ते परिणाम पामे त्यारे ते सुरूपपणे यावत् वारंवार परिणमे हे, पण दुःखरूपे परिणत थतो नथी. ए प्रमागे हे कालोदायि ! जीवोना कल्याण की कल्याण फल विपाकसंयुक्त होय . ॥ ३०५॥ ४ा दो भंते ! पुरिसा मरिसया जाव सरिसभंडम तोवगरणा अन्नमन्नणं सद्धिं अगणिकार्य समारंभनि, तत्थ साणं एगे पुरिसे अगणिकायं उज्जालेति एगे पुरिसे अगणिकायं निवावेति, एसि णं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं | कयरे २ पुरिसे महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महावेयणतराए चेव कयरे या परिसे अप्पकम्मनगए चेव जाव अपवेयणतराए चेव, जे से पुरिसे अगणिकाय उमालेइ जे वा से पुरिसे अगणिकाय निव्वावेति ?, कालोदाई ! तत्थ ण जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेड से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव जाव महावेयगतगए देव, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निम्बावेह से गं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतगए चेव । से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ-तत्य ण जे से पुरिसे जाव अप्पवेयणराए चेव ?, कालोदाई ! तत्थ ण जे से पुरिसे अगणिकायं उजालेह से णं पुरिसे बहतरागं पुढ विकायं समारंभति बहुतरागं आउक्कायं समारंभति अपतरायं तेऊकायं समारंभति बहुतरागं वाऊकायं ममारंभति बहुतरायं For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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