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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ७ शतके उद्देशः३ ॥५१॥ छे तेने वेदतो नथी. [उ०] हे गौतम ! कर्मने वेदे छे अने नोकर्मने निर्जरे छे; ते हेतुथी हे गौतम ! एम कहेवाय छे के यावत् व्याख्या | (निर्जरे छे) तेने वेदतो नथी. ए प्रमाणे नारको पण जाणवा, यावत् वैमानिको जाणवा. प्रज्ञप्ति 18 से नूणं भंते ! जं वेदिस्संति तं निजरिस्संति जं निजरिस्संति तं वेदिस्संति ?, गोयमा ! णो तिणहे समठे. ॥५१७॥ से केणट्टेणं जाव णो तं वेदेस्संति ?, गोयमा ! कम्मं वेदिस्संति नोकम्मं निजरिस्संति, से तेण?णं जाव नो तं निजरिस्संति,एवं नेरइयावि जाव वेमाणिया।से गुणं भंते! जे वेदणासमए से निजरासमए जे निजरासमए से |वेदणासमए?, नो तिणढे ममढे.से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ जे वेयणासमए न से निजरासमए जे निजरासमए | न से वेदणासमए ?, गोयमा ! जं समयं वेदेति नो तं समयं निजरेंति, जं ममयं निजरेंति नो तं ममयं वेदेति, अन्नम्मि समए वेदेति अन्नम्मि समए निजरेंति, अन्ने से वदणासमए अन्ने से निजरासमए, से तेणटेणं जाव न से वेदणासमए न से निजरासमए । नेरइयाणं भंते ! जे वेदणाममए से निजरासमए जे निजरासमए से वेदणासमए ?, गोयमा ! णो तिणढे समढे, से केणटेणं भंते ! एवं बुचड़ नेरइयाणं जे वेदणासमए न से निज्जरासमए जे निजरासमए न से वेदणासमए ?, गोयमा ! नेरइया णं जं समयं वेदेति णोतं समयं निजरेंति जं समयं निजरंति नो तं समयं वेदेति अन्नम्मि समए वेदेति अन्नम्मि समए निजरेंति अन्ने से वेदणासमए अन्ने से निजरासमए, से तेणद्वेणं जावन से वेदणासमए एवं जाव वेमाणिया ।। (सूत्रं २७८)॥ [प्र.] हे भगवन् ! शुं जेने वेदशे तेने निर्जरशे, अने जेने निजरशे तेने वेदशे? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] %ARACK For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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