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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥४९३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यग्दर्शननो अनुभव करे, त्यारपछी सिद्ध थाय, यावत् ( सर्व दुःखनो ) अंत करे. ॥ २६३ ॥ अत्थि णं भंते! अकम्मस्स गती पन्नायति ?, हंता अस्थि ॥ कहन्नं भंते ! अकम्मस्स गती पन्नायति ?, गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गतिपरिणामेणं बंधणछेयणयाए निरंधणयाए पुव्वपओगेणं अकम्मस्स गती पन्नता ॥ कहनं भंते! निस्संगयाए निरंगणयाए गइपरिणामेणं बंधणछेयणयाए निरंधणयाए पुत्र्वप्पओगेणं अकम्मस्स गती पन्नायति ?, से जहानामए - केइ पुरिसे सुकं तु निच्छिडुं निरुवहति आणुपुच्चीए परिकम्मेमाणे २ दमेहि य कुसेहि य वेढेइ २ अट्टहिं महियालेवेहिं लिंपइ २ उण्हे दलयति भूर्ति २ सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसिसि उदगंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! से तुंबे तेसिं अट्टहं महियालेवाणं गुरुयत्ताए भारिमत्ताए गुरुसंभारियत्ताए सलिलतलमतिवत्ता अहे घरतिलपाणे भवइ ?, हंता भवइ, अहे णं से तुंबे अट्टण्हं महियालेवाणं परिक्खएणं धरणितलमतिवत्ता उपि सलिलतल इट्ठाणे भवइ ?, हंता भवइ, एवं खलु गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गइपरिणामेणं अकम्मस्स गई पन्नायति । [0] हे भगवन् ! कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय ? [उ० ] हे गौतम! हा, स्वीकाराय. [प्र० ] हे भगवन् ! कर्मरहित जीवनी गति केवी रीते स्वीकाराय ? [अ०] हे गौतम! निःसंगपणाथी, नीरागपणाथी, गतिना परिणामथी, बंधननो छेद थवाथी, निरिधन थवाथी - कर्मरूप इन्धनथीमुक्त थवाथी अने पूर्वप्रयोगथी कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय है. [प्र० ] हे भगवन् ! निःसं For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः १ ॥४९३ ॥
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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