SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४८६॥ BHASHAA ६ शतके उद्देश:१० ॥४८६॥ % | [उ०] हे गौतम! प्राणधारण ते नियमे जीव कहेवाय अने जे जीव होय ते प्राणधारण करे पण खरो अने न पण करे. [प्र०] | हे भगवन् ! प्राणधारण करे ते नैरयिक कहेवाय ? के नैरयिक होय ते प्राणधारण करे ? [उ०] हे गौतम ! नैरयिक तो नियमे | प्राण धारण करे अने प्राण धारण करनार तो नैरयिक पण होय अने अनैरयिक पण होय, ए प्रमाणे यावत् वैमानिक सुधी दंडक कहेवो. [प्र०] हे भगवन् ! भवसिद्धिक नैरयिक होय ? के नैरयिक भवसिद्धिक होय ? [उ०] हे गौतम ! भवसिद्धिक नैरयिक पण होय अने अनैरयिक पण होय तथा नैरयिक भवसिद्धिक पण होय अने अभवसिद्धिक पण होय. ए प्रमाणे यावत् वैमानिक | सुधी दंडक कहेवो. ॥ २५५॥ | अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति एवं खलु सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेयणं वेयंति, से कहमेयं भंते! एवं ?, गोयमा ! जन्नं ते अन्नउत्थिया जाव मिच्छं ते एवमासु, अहं पुण | गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेयणं वेयंति, आहच्च सायं, अत्थेगतिया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतसायं वेयणं वेयंति, आहच्च अस्सायं वेयर्ण वेयंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेयणं वेयंति, आहच सायमसायं । से केणटेणं०?, गोयमा! नेरइया | एगंतदुक्खं वेयणं वेयंति [आहच्च सायमसायं] आहच सायं, भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिया एगंतसायं वेदणं वेयंति, आहच असायं, पुढविकाइया जाव मणुस्सा वेमायाए वेयणं वेयंति, आहच सायमसायं, से तेण?णं. ॥ (सूत्र २५६)॥ % % %A % 4S4% For Private and Personal use only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy