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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४६९॥
६ शतके उद्देश:७ ॥४६९॥
| एगे देवकुरुउत्तरकुरुगाणं मणूसाणं वालग्गे, एवं हरिवासरम्मगहेमवएरन्नवयाणं, पुव्वविदेहाणं मणूसाणं Pा अट्ट वालग्गा मा एगा लिक्खा, अट्ट लिक्खाओ सा एगा ज़्या, अट्ठ ज्याओ से एगे जवमज्झे, अट्ट जवम8| ज्झाओ से एगे अंगुले, एएणं अंगुल पमाणेणं छ अंगुलाणि पादो बारस अंगुलाई विहत्थी चउव्वीसं अंगुलाई
| रयणी अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी छन्नउतिअंगुलाणि से एगे दंडेति वा धणूति वा जूएति वा नालियाति |वा अक्खेति वा मुसलेति वा, एएणं धणुप्पपाणेणं दो धणुसहस्माई गाउयं चत्तारि गाउयाई जोयणं, एएण जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयामविखंभेणं जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं तं तिउणं सविसेसं परिरएणं, सेणं एगाहियबेयाहियतेयाहिय उकोसं सत्तरत्तप्परूढाणं संमट्टे संनिचिए भरिए बालग्गकोडीगं[ते], से णं वालग्गे | नो अग्गी दहेजा नो वाऊ हरेजा नो कुत्थेजा नो परिविद्धं सेजा नो पूतित्ताए हव्वमागन्छेजा, ततो णं वास| सए २ पगमेगं वालग्गं अवहाय जावतिएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निम्मले निहिए निल्लेवे अवहडे विसुद्धे भवति से तं पलिओवमे । | प्र०] हे भगवन् ! ते औपमिक शुं कहेवाय ? [उ०] हे गौतम ! ते औपमिक वे प्रकारनु का छे, ते जेमके, एक पल्योपम | अने बीजें सागरोपम. [प्र०] हे भगवन् ! पल्योपम ते शुं कहे वाय ? अने सागरोपम ते शुं कहवाय? [उ०] हे गौतम ! 'सुतीक्ष्ण | शस्त्र वडे पण जेने छेदी, भेदी न शकाय, ते परम अणुने केवलिओ सर्व प्रमाणोनी आदिभूत प्रमाण कहे छे' अनंत परमाणुओना | समुदायनी समितिओना समागमवडे ते एक उच्छलक्ष्णश्लक्ष्णिका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु, वालाग्र, लिक्षा, यूका, यवमध्य अने
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