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व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥४६॥
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६ शतके उद्देशः ५ ॥४६०॥
|सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता । लोगंतियविमाणेहिंतो णं भंते ! केवतियं अबाहाए लोगते पण्णत्ते ?, गोयमा Kा असंखेज्जाई जोयणसहस्साई अवाहाए लोगते पण्णत्ते । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ६-५॥ (सूत्रं २४२)॥
[प्र.] हे भगवन् ! सारस्वत अने आदित्य, ए बे देवोनो केटला देवो अने केटला देवना सेंकडाओ परिवार कयो छे ? [उ.] हे गौतम ! सात देवो अने देवना सात सेंकडाओ एटले सातसो देवो, सारस्वत अने आदित्य देवोनो परिवार छे, वहिन अने वरुण ए बे देवोनो चौद देव अने चौदहजार देव परिवार कह्यो छे, गर्दतोय अने तुपित ए बे देवोनो सात देव अने सात हजार देव | परिवार कह्यो छे, अने बाकीना देवोनो नव देव अने नवसो देव परिवार कह्यो छे. परिवारनी (संख्याने सूचवनारी गाथा कहे छेः) प्रथम युगलमा सातसोनो परिवार छे. बीजामां चौदहजारनो परिवार छे. त्रीजामा सातहजारनो परिवार छे अने चाकीनामां नवसोनो परिवार छे. [प्र०] हे भगवन् ! लोकांतिक विमानो क्यां प्रतिष्ठित छे एटले लोकांतिक विमानो कोने आधारे छ? [उ०] हे गौतम! लोकांतिक विमानो वायुप्रतिष्ठित छे, ए प्रमाणे विमानन प्रतिष्ठान, विमानोर्नु बाहुल्य, विमानोनी उंचाइ अने विमानोनुं संस्थान जेम 'जीवाभिगम' सूत्रमा देव उद्देशकमां ब्रह्मलोकनी वक्तव्यता कही छे तेम अहिं जाणवू यावत् हा, गौतम ! अहिं अनंतवार पूर्वे जीवो उत्पन्न थया छे, पण लोकांतिक विमानोमां देवपणे अनंतवार नथी उत्पन्न थया. [प्र.] हे भगवन् ! लोकांतिक विमानोमां केटला काळनी स्थिति कही छे ? [उ.] हे गौतम ! लोकांतिक विमानोमां आठ सागरोपमनी स्थिति कही छे. [प्र०] हे भगवन ! लोकांतिक विमानोथी केटले अंतरे लोकांत कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम! असंख्य हजार योजनने अंतरे लोकांतिक विमानोथी लोकांत कह्यो छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावत् विहरे छे. ॥ २४२॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना छटा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
तेक विमानोबाजारनो परिवारवार कयो छ. पर
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