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६ शतके उद्देशः ५ ॥४५॥
असंखेज वित्थडे थ,तत्थ णं जे से संखेजवित्थडे से णं संखेजाई जोयणसहस्माइं विकावंभेणं असंखेजाई जोयणव्याख्या
सहस्साइं परिक्खेवेणं प०,तत्थ गंजे से असंविजवित्थडे से णं असंखेजाई जोयणमहस्साई विक्खभेणं असंप्रज्ञप्तिः
खेजाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्तो । नमुकाए णं भंते! केमहालए प०?, गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे २] ॥४५०॥ सव्वदीवसमुद्दाणं सबभंतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ देवे णं महिड्ढीए जाव महाणुभावे इणामेव २.
त्तिक? केवलकप्पं जंबुद्दीव २ तीहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियहित्तार्ण हव्वमागच्छिन्ना, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव देवगईए वीईवयमाणे २ जाव एकाहं वा दुयाहं वा तीयाहं वा उकोसेणं
छम्मासे बीतीवएजा अत्थेगतियं तमुक्कायं बीतीवएजा, अत्थेगतियं नो तमुक्काय बीतीवजा, एमहालए णं 8|गोयमा ! तमुक्काए पन्नत्ते । FI [प्र०] हे भगवन् ! तमस्काय किंसंस्थित छ एटले तमस्कायर्नु संस्थान आकार जेवू का छे. [उ०] हे गौतम ! तमस्काय,
नीचे, मल्लकमूल-कोडीआना नीचेना भागना आकारवाळो कयो छे अने उपर, कुकडाना पांजराना जेवा आकारवाळो कयो छे. [प्र.] हे भगवन् ! तमस्काय विष्कंभवडे कटलो कद्या छे अने परिक्षेपवडे केटलो कह्यो छे? [उ०] हे गौतम ! तमस्काय वे प्रकारनो |
कह्यो छे; एक तो संख्येय विस्तृत अने बीजो असंख्येय विस्तृत, तेमां जे ले संख्येय विस्तृत छे ते विष्कंभवडे संख्येय योजन सहस्र है कया छे अने परिक्षेपवडे असंख्येय योजन सहस्र कया छे अने तेमां जे ते असंख्येय विस्तृत छे ते असंख्येय योजन सहस्र विष्कंभ
वडे कयो छे अने असंख्येय योजन सहस्र परिक्षेपवडे करो छे. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्काय केटलो मोटो कयो छे ? [उ०] हे |
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