________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४२९||
६ शतके उद्देशः३ ॥४२९॥
है ते वस्त्र क्रमे क्रमे शुद्ध थतुं होय, शुद्ध पाणीथी धोवातुं होय तो तेने लागेला पुद्गलो सर्वथी भेदाय यावत् परिणाम पामे,ते हेतुथी |
अल्पक्रियावाळा माटे पूर्व प्रमाणे का छे. ॥ २३२ ।।। __वत्थस्स णं भंते ! पोग्गलोवचए किं पयोगसा वीससा ?, गोयमा ! पओगसावि वीससावि । जहा णं भंते ! वत्थस्स ण पोग्गलोवचए पओगसावि वीससावि तहा णं जीवाणं कम्मोवचए कि पओगसा वीससा., & गोयमा ! पओगमा, नो वीससा, से केणद्वेणं० १, गोयमा ! जीवाणं तिविहे पओगे पण्णत्ते, तंजहा-मणप्प| ओगे वह का०, इच्चेतेणं तिविहेणं पओगेणं जीवाणं कम्मोवचए पओगसा, नो वीससा, एवं मवेसिं पंचेंदि| दियाणं तिविहे पओगे भाणियब्वे, पुढविकाइयाणं एगविहेणं पओगेणं, एवं जाव वणस्सइकाइयाण, विगलिं
दियाणं दुविहे पओगे पण्णत्ते, तंजहा-वइपओगे य कायप्पओगे य, इचेतेणं दुविहेणं पओगेणं कम्मोवचए ४/पओगमा, नो वीससा, से एएणद्वेण जाव नो वीसमा, एवं जस्स जो पओगो जाव माणियाण ॥ (सूत्रं २३३)
प्र०] हे भगवन् ! वस्त्रने जे पुद्गलोनो उपचय थाय छे ते शुं प्रयोगथी पुरुष प्रयत्नथी थाय छे के स्वाभाविक रीते थाय Mछ ? [उ०] हे गौतम ! प्रयोगथी थाय के अने स्वाभाविक रीते पण थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! जेम वरूने प्रयोगथी अने स्वाहाभाविक रीते पुद्गलोनो उपचय थाय छे तेम जीवोने जे कर्मपुद्गलोनो उपचय थाय छे ते शुं प्रयोगथी अने म्वाभाविक रीते, ए
बन्ने कारणथी थाय छे ? [उ.] हे गौतम ! जीवोने जे कर्मनो उपचय थाय छे ते प्रयोगथी थाय हे पण स्वाभाविक रीते थतो नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ते शा हेतुथी ? [उ०] हे गौतम ! जीवोने त्रण प्रकारना प्रयोगो कह्या छे, ते जेमके, मनप्रयोग, वचन
omance
For Private and Personal Use Only