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श्रगम्तिया
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रसायनिक संगठन -- त्वचा में कषायीन ( Tammin ) और निर्यास होता है । श्रीषधि निर्माण त्वक क्वाथ (२० भाग में १ भाग ), मात्रा - १ तोला में २॥ तोला । मूल (स्वरस ) २ || मा० से ५ || मा० | इसकी जड़ की लुगदी और पत्र का पुलटिस स्थानीय रूप से उपयोग में लाया जाता है। शर्वन की मात्रा २ मा० । हानिकर्ता - उदर में वायु उत्पन्न करता है । दर्पनाशक - मोठ और मिर्च |
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गुण धर्म ( प्रभाव ) तथा प्रयोग - श्रायुवैदिक मतानुसार - ग्रन्तिया पित्त कफ नाशक, गर्मी को शांत करनेवाला, शीतल, योनि शूल, तृष्णा, कोढ़ तथा शोध नाशक हैं। वक अर्थात् अगस्त अत्यन्त शीतल, निक्र, मधुर और मदगंध युक्त ( कहीं कहीं "मधु गंधकः " पाउ आया है जिससे अभिप्राय 'मधु गंध युक' है ) तथा पित्तदाह, कफ, श्वास एवं श्रम नाशक और दीपन है । रा० नि० ब० १० ।
सफेद, पीले, नीले और लोहित पुष्प भेद से स्तिया चार प्रकार का होता है । यह मधुर, शीतल, स्त्रीदोष, श्रम, कास और भूतवाधा का नाश करने वाला है। रा० नि० ।
गथिया - शीतल, रुक्ष, वातकारक, कड़वा है, और पित्त कफ चातुर्थिक ज्वर ( चौथिया ) तथा प्रतिश्याय को नष्ट करता है ।
अगस्त पुष्प के गुण - अगस्तिया पुष्पशीतल ( मधुर ) है, तथा त्रिदोष, श्रम, वलास, कास, विवर्णता, भूतवाधा और बल को नष्ट करता है । रा० नि० च० १० ।
अगस्तिया के फूल - शीतल, चातुर्थिक ज्वर निवारक, रतौंधे को दूर करने वाले, कडुवे कसैले पचने में चरपरे रूक्ष और वातकारक हैं तथा पीनसरोग कफ एवं पित्त को दूर करते हैं ।
भा० पू० १ भा० शा० व० । वृ० नि० र० । अगस्ति के पत्ते के गुण- श्रगस्तिया के पत्ते चरपरे, कड़वे, भारी, मधुर, किञ्चित गरम और स्वच्छ हैं तथा कृमि, कफ, कण्डू (खुजली), विष और रक पित्त को हरते हैं। वे० निघ० ।
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• अगस्तिया अस्ति की फली के गुण अगस्तिया की फली सारक ( कुछेक दस्तावर ) बुद्धिदायक रुचिकारक, हलकी, पचने में मधुर, कड़वी, स्मरण शक्तिवर्धक है तथा त्रिदोष, शूल, कफ, पांडुरोग, विष, शोष, ( कहीं कहीं शोक पाठ है) और गुल्म को दूर करती है । इसकी पकाई हुई भांजी रूक्ष एवं पित्तकारक है ।
स्तिकीय व्यवहार
सुश्रुत - अगस्तिया अधिक शीतल एवं उपसा नहीं है और नांध रोगी के लिए हित कारक है। सू० ४६ ० ० ।
वाग्भट - कांध्य में अगस्तिया के पत्र अगस्तिया के पत्र को सिल पर पीस कर इसको गोघृत में पकाकर घृत सिद्ध करें इस घी को नांध रोगी को पिलाएँ । ( उ० १३ श्र० )
पाक करने की विधि-गोघृत १ सेर, अगस्तिया के पत्ते शिल पर पिसे हुए 51 एक पाव, इसे मंद अग्नि पर यहां तक पकाएँ कि रस शेष न रहे | पुनः कपड़े से छानकर रखें ।
वक्तव्य
चरक के पुष्पवर्ग में इसका उल्लेख नहीं है । धन्वन्तरीय निघंटुकार ने अगस्तिया का गुण वर्णन नहीं किया । राजवल्लभ में अगस्तिया के फूल का गुण वर्णित है । पत्र तथा शिम्बी फली का गुण नहीं लिखा है ।
भाव प्रकाशकार - लिखते हैं कि अगस्तिया का पत्र प्रतिश्याय अर्थात् तरुण प्रतिश्याय (सर्दी) निधारक है ।
वृहनिटुकार के मत से अगस्तिया की की शिम्बी (फली) 'सर' अर्थात रेचक है ।
चक्रदत्त चातुर्थिक ज्वर में अगस्तिया के पत्र- जब दो दिन के अन्तर से ज्वर श्राए तब अगस्तिया के पत्र का नस्य है । ( ज्वर वि० ) ज्वर आने के दिन ज्वर से पूर्व नस्य लें | यह प्लीहा यकृद्विवर्जित चातुर्थिक ज्वरमें प्रयोज्य है । भाव प्रकाश-वात रक्त में अगस्तिया का फूल - अगस्तिया के फूल को चूस कर इसको भैंस के दूध में मिलाकर उसकी दधि जमाएँ ।
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