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Ceylon moss ) दक्षिण भारत तथा लंका में प्राचीन काल से पोषण मृदुता जनक, स्निग्धता कारक तथा परिवर्तक रूप से और मुख्यतः वक्ष रोगों में उपयोग में लाया जाता है । पुतलन और कालपेस्टिर के मध्यस्थित महाझील वा प्रशान्त जल में यह अधिकता के साथ उत्पन्न होता है । प्रधानतः दक्षिणी पश्चिमी मानसून काल में जलस्थ क्षोभ के कारण जब यह पृथक् होजाता है तो देहाती लोग इसे एकत्रित कर लेते हैं । तदनन्तर उसको ( सिवार को ) चटाइयों पर विछा कर दो तीन दिवस पर्यन्त धूप में शुष्क करते हैं । पुनः ताजे जल से कई बार धोकर धूप में खुला रखते हैं जिससे वह श्वेत हो जाता
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बँगाल फार्माकोपिया ( पृष्ठ २७६ ) में उसके उपयोग का निम्त क्रम वर्णित है
काथ - शुष्क अगर अगर चूर्ण २ डान, जल १ कार्ड० इनको २० मिनट तक उबालकर जलमल से छान लें। इसमें अर्द्ध थाउंस के अनुपात से विचूर्णित शैवाल की मात्रा अधिक करने से ( या १०० भाग जल तथा शुष्क शैवाल चूर्ण १ भाग इं० मे० मे० ) - शीतल होने पर छना हुग्रा ate सरेश में परिणत हो जाता है और जब इसको दालचीनी वा निम्बूफल स्वक् या ( तेजपत्र ) शर्करा तथा किञ्चित् मद्य द्वारा स्वादिष्ट बना दिया जाता है तो यह रोगी बालकों तथा रोगानन्तर होने वाली निर्बलता के लिए उत्तम एवं हलका ( पोषक) पथ्य होजाता है । (डाइमॉक)
रगर का शुष्क पौधा श्रौषध रूप से व्यवहार में श्राता है । इसमें पेक्टिन् तथा वानस्पतीय सरेश अधिक परिमाण में वर्तमान होते हैं । इसका क्वाथ ( ४० में १ ) मृदुताजनक एवम् स्नेहकारक रूप से वक्ष रोगों, प्रवाहिका तथा अतिसार में लाभदायक होता है । इसके द्वारा निर्मित सरेश (Jelly ) श्वेतप्रदर असृग्दर तथा मूत्रपथस्थ क्षोभ में व्यवहृत होता है । इसमें नैलिका ( Iodine ) होती है अस्तु यह घेघा ( Goitre ) तथा कंमाला आदि में लाभ
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प्रद होता है । यह सिरेशम माही ( [singlass) का उत्तम प्रतिनिधि है । इं० मे० मे० ।
हिन्दू जनता इसे अगर अगर ( Japan ess isinglass ) की अपेक्षा अधिक पसन्द करती है क्योंकि उसको इसके प्राणिवर्ग से निर्मित होने का सन्देह है, जो सर्वथा भ्रममूलक एवं ग्रज्ञानता पूर्ण है । ( डाइम(क)
( २ ) अगर- अगर agar agar - जापानीज़ आइसिन् ग्लास (Japanese Isinglass), जेलोसीन Gelosin ) - इं० जेलोडियम् कॉर्नियम् ( Gelidium Cornóum, Laon. ) जी० कार्टिलेजीनियम् ( ( Cartilagineum, Gill ) - ले० । माउसी डी चाइनी ( Mousso do chine ) - फ्रां० । श्री ( 'Thao ) - जापा० । याङ्ग दूद्वै चा० । चीनी घास- भा० वा० ।
शैवाल जाति ।
( N. C. Alge )
( नॉट ऑफिशल Not official. ) उत्पत्ति स्थान - हिन्द महासागर | विवरण- अगर- अगर उपरोक्त दोनों प्रकार के सिवारोंसे निर्मित झिल्लीमय फीता को शकल का शुष्क सरेश है। सम्भवतः यह स्फीरोकॉक्कस कॉम्प्रेसस (Sphosrococcus com pressus, dg.) तथा ग्लॉइऑॉपेल्टिस टिनेक्स ( gloiopeltis tenax, Ag.) से भी प्रस्तुत किया जाता है ।
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हैन्यरो - इसके विषय में निम्न वर्णन उद्धत करते हैं: - जापानीज़ श्राइसिन् ग्लास के शुद्ध नाम से अभी हाल में ही जापान से इङ्गलैण्ड ● में एक वस्तु भेजी गई है जो दबी हुई, असमान चतुर्भुजीय छड़ होती और प्रत्यक्ष रूप से लहरदार, पीताभयुक्र श्वेत एवं स्वच्छ झिल्लियों की बनी होती है। ये छड़ ११ इंच लम्बे तथा १ से डेढ़ इंच चौड़े, श्राशयों से पूर्ण अत्यन्तं हलके ( प्रत्येक लगभग ३ ड्राम ) अधिक लचीले परंतु मरलता पूर्वक टूट जानेवाले