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अस्तुउसम
अहजक प्रस्तुउसन assu-us n--10 सुफेद राई.-हि०। राहणान्येव पञ्चतन्मात्रारायुस्पधन्ते । सु० शा."
सिद्धार्थक--सं०। ( Eruca sativa ) १०। 'मेमा। .... ...... अहतम् ahatam-सं० क्ली० नूतन वस्त्र । (New अस्सुलेमानियुल, अकाल assulemaniyul
_cloth. ) हला०। akkāl-अ० सुलेमानी, दाराशिकना,दार चिकना अहत्ती ahatti-सि० कुम्बी, खुम्बी । (Careya '-हिं० । ( Hydrargyri perchlori | arborea, Rod.) मेमो०।। dum;)
अहन् ahan-हिं० संज्ञा पुं० [सं०] दिन ।।। असहब ashab-१० श्वेताभायुक्त . रकवर्ण,
पण अहन् पुष्प ahan-pushpa-हिं० संज्ञा .. प्याजी रंग, रोग-विज्ञान में श्वेताभायुक्त रक्क |
[सं०] दुपहरिया का फूल । गुल दुपहरिया।
प्रहर atara-हिं० सज्ञा पु० डोवा, पोखरा, सरोवर्णीय कारोरह. ( मूत्र ) को कहते हैं।
___वर । ( A reservoir for collecting अहं .a.ham-संव० [सं०] मै । (I).
rain-water.) संज्ञा पु. [सं०] अहंकार, अभिमान । । अहरङ्ग aharanga-मल० काष्ठ अंगार, लकड़ो अहः a hah-सं० क्लो० [सं० अहंन् ] का कोयला । Wood charcoal(Carbor: मह aha-हि. संज्ञा पु. (१) दिवस, ligni) इ. मे०. मे०।
- दिन । ( Day.)। अम० । (२) सूर्य । अहरदृक् a haridrik-सं०पु गृध्र, गिद्ध पक्षी।.. अहङ्कारः aharikārah 1 -सं० ( हिं० संज्ञा)
शकुनी-बं० । वल्चर (A vulture.) । अहंकार ahankara Jपू[वि. अहंकारी]
। वै. निघ०। (1) अभिमान, गवे, धमंड। (२) क्षेत्रज्ञ | अहरण aharana
-जय. महपुरुष की चेतना । इन्द्रियादि सम्पूर्ण शरीर. अहरणी aharani. . J रन, अर. ध्यापी ग्रह अर्थात् मैं और मेरा के भाव की
। उन । विशेष प्रवृत्ति । ममत्व । वैकारिक, लैजस, एवं | अहरनaharan-हि० संज्ञा स्त्री० भूत अर्थात् साविक राजस, तामस भेद से यह अहरनि ahirani-हिं० संज्ञा स्त्री० तीन प्रकार का होता है। सांख्य के समान भायु- [सं० प्रा+धारण रखना.] निहाई । वेद शास्त्रियों ने इसकी उत्पत्ति महत्तत्व से मानी अहरह aharah-हिं. क्रि० वि० प्रति दिन । है । इनके अनुसार यह महत्तत्व से उत्पन्न एक (Everyday.) द्रव्य अर्थात उसका एक विकार है। इसकी अहरा ahara-हिं० संज्ञा पु० [सं० प्राहरण सात्विक अवस्था और तेजस की सहायता से
=इकट्ठा करना ] १-जाड़े में तापनेका स्थान | कंडे पाँच, ज्ञानेन्द्रियाँ पाच कर्मेन्द्रियाँ तथा मन की । का ढेर जो जलाने के लिए इकट्ठा किया जाए ।
उत्पत्ति होती है और तामस अवस्था तथा तेजस (२) वह भाग जो इस प्रकार इकट्ठे किए हुए । अर्थात् राजस की सहायता से पंच तन्मात्राओं .. कंडों से तैयार की जाए। .
की उत्पत्ति होती है, जिनसे क्रमशः आकाश, हराक ahraa-१० जलाना । लु०क०।। वायु, तेज, जल और पृथ्वी की उत्पति होती है। हरितः aharitah-सं०० पाण्डुरोग । हारिद्रः यथा
रोग । अथर्व० । सू० २२ । ३। का० १।... "तहिकाच महतस्तषण एवाहकार उत्पद्यते, अहर्गण ahargana-हिं० संज्ञा पु० [सं०] सतु त्रिविधो वैकारिकम्तैजसो भूतादिरिति; तत्र दिनों का समूह । वैकारिकादहकारात् तैजस सहायातक्षणान्येवै | महर्जवः sharjjavah-सं० पु. सम्बत्सर, कादन्द्रियाण्युत्पचते; भूतादेरपि तैजस सहाया- वर्ष। (A year.) के० ।
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