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अष्टाधि
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अष्टाश्रि ashtashri |
वि० [सं.]
(३) उत्तरापथ प्रसिद्ध वत्त लाकार पाषाण अष्टास्त्र ashtasra ह० वि० [सं.]
खण्ड (जे ज्वरः ) वा पत्थर की गोली । लोहार __ पाठ कोने वाला, अठकोना, अकोण।
की लोहे की दाँती, अस्त्र विशेष । गयदास । अष्टिः ,ष्टिः ashtih, shchih--लं. स्त्री
(४) प्रोस्टेट ग्रंथि विशेष । ( Pros taअष्टि ashri--हिं० संज्ञा स्त्री०
te gland. ) (1) अडी । आँटी--बं०। (२) मींगी अष्टि(ष्ठावान् ashthi,-sithi, van-सं० पु.. " (Nucleus)। नुवात--अ०। देखो-सेल । (१) शूक रोग विशेष । लक्षण-जो कड़ी और अष्टौषधिः ashtoushadhih -स. स्त्री० भीतर से विषम ऐसी वायु के कोप से पिड़िका हो
ब्रह्मसुवर्चला, श्रादित्यपर्णी, नारीका , गोधा, | वह 'अष्फीलिका' है। यह विष युक शूकों से होती
सर्पा, पद्मा, अज और नीली ये अाठ अष्टी- है । सु० नि० १३ अ०। देखा-अरोलिका। · षधि कहलाती हैं । च० चि० १० ।
(२) जानु । (knee) रा०नि० २०१८ ।
अष्टावान्, त् : shthiva', t--सं० प
-स'. स्त्री०, अष्ठिला ashthiia
घुटना,
___ जानु । ( Kuee) सु० शा० । अथव० । सू० अष्ठीला ashthili संज्ञा स्त्री० (१)
६ । २१ । क० १०॥ अष्ठीलिका ashthiliki बायु रोग विशेष ।
अष्ठीला दाह asthhila.dahu-f० पु. ऐक रोग जिसमें मूत्राशय में अफरा होने से प्रोस्टेट ग्रंथि प्रदाह । ( Prost.ttitis ) पेशाव नहीं होता और एक गां पड़ जाती शीला विकार :
अष्ठीला विकार ashthila-vikāra--हि० प. है जिससे मलावरोध होता है और वस्ति में पीड़ा प्रोस्टेट ग्रंथि के रोग । ( Diseases of होती है । इसके निम्न भेद हैं
the prostate ). लक्षण-वह ग्रंथि जो ऊपर को उठी हुई तथा | श्रष्ठाला वृद्धि ashthila-vriddhi-हि.स्त्री. अप्ठीला के सदृश कठोर और श्रानाह के लक्षणों
प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ जाना, वाताष्ठाला | से युक्र होती है उसे श्रष्ठाला कहते हैं। वा० ( Prostatic enlargement. ) नि० ११ ०। नाभि के नीचे उत्पन्न हुई ! अष्टोलास्थित अश्मरी Ashthilāsthitarash. इधर उधर चली हुई अथवा अचल जो एक ही
mari-
हिंस्त्रो० प्रोस्टेट ग्रंथि स्थित अश्मरी । स्थान में रहे ऐसी पत्थर की वटिया के समान ( Prostatic calculi ) देखो-प्रश्मरी कड़ी और ऊपर को कुछ लम्बी और पाड़ी, कुछ
वा प्रोस्टेट । ऊँची हो और अधोवाय. मल. मत्र इनको रोकने असक्लिनः asanklinnah-सं० त्रि० सम्यक वाली गानों को वाताटोला कहते हैं। जो
रूप से श्राई नहीं अर्थात् जो पूर्णतः क्लेदलुक अत्यन्त पीड़ा युक्त वायु, सूत्र, मल को रोकने
(तर) न हो । यथा-"पिंडीकृतमसंक्रिमम् ।" वाली और जो तिरछी प्रगट हुई हो उसको
भा० पू० १ मा०। : प्रत्यष्ठीला कहते हैं। मा०नि० वा० व्या०।।
असंयोग asanyoga-हि०० भिन्न, अनमेल । वाग्भट्ट के अनुसार तिरछी और ऊपर को उी
असंलग्न asanlagna-हिं० वि० जो मिला न हुई ग्रंथि को प्रत्यकीला कहते हैं। वा० नि.
.. हो, असंयुक्र, अमिल ।
असकत asakata-हि० स्रो० श्रालस्य, उर्घास । ११.०।
L (Drowsiness, slothfulness. ) (२) शूकरोग भेद । लक्षण-जो कड़ी और असकती asakati-हिं. पु. पालसी, ढीला। भीतर से विषम ऐसी बायु के कोप से पिडिका ( Drowsy, lazy.) हो वह श्रष्ठालिका है। यह विष युक्त शूर्को से अलकुट asakura-लेदक, फलञ्च, नंगकी-१ होती हैं । सु०नि० १४ अ० ।
1 . (चनाब नदी)। मेमाः ।
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