________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
अश्वगंधा
भाषानुसार प्रस्तुत असगन्ध के क्वाथ में किञ्चिद् गोमूत्र का प्रक्षेप देकर, ऋतुस्नान की हुइ बन्ध्या वाला (नारि) इसका पान करे। यह गर्भप्रद है ।
यथा---
७६.
"काथेन हयगन्धायाः साधितं सघृतं पयः । ऋतुस्नाता वाला पीत्वा धरो गर्भन संशयः ॥ " ( योनिव्यापश्चि० ) (४) बालकके कार्श्य गेगमें अश्वगन्धाकुश शिशु के शरीरकी पुष्टि हेतु दुग्ध, घृत, तिल तैल, किम्वा ईषदुष्ण दुग्ध के साथ असगन्ध के चूर्ण का सेवन कराएँ । यथा-
"पीताऽश्वगन्धा पयसार्द्धमासम् । घृतेन तैलेन सुखाम्बुना वा ॥ कृशस्य पुष्टिं वपुषो विधत्ते 1 वालस्य शस्यस्य यथाम्बुवृष्टिः ॥ " ( रसायनाधिकार )
मात्रा -- अवस्थानुसार । भावप्रकाश-हृदयगत वायु रोग में अश्वगन्धा--वायु को हृदयगत होने पर असगन्ध को उष्ण जल के साथ पीस कर सेवन कराएँ । यथा--". पवेदुष्णाम्भसा पिठामश्वगन्धाम् ।"
( मं० ख० २ भा० ) वंगसेन -- निद्रानाश रोग में अश्वगन्धाअश्वगन्धा चूर्ण को गोवृत तथा चीनी के साथ चाटने से नष्टनिद्रा वाले को नींद श्राजाती है । यह परीक्षा सिद्ध है । यथा-
"चूर्णं हयगन्धायाः सितया सहितञ्च सर्पिषा लोढम् । विदधाति नष्टनिद्रे निद्रामश्वेव सिद्धमिदम् ॥" जल दोषादि योगाधिकार )
वक्तव्य
जिन दव्यों के श्राद्ध रूप में प्रयुक्त करने की विधि है "सदैवार्द्रा प्रयोक्रव्या” उनमें से असगन्धभी एक है । असगन्ध कच्चे अर्थात् गीले रूप में ही व्यवहृत होता है । चरक की वातव्याधि की चिकित्सा के अन्तर्गत श्रश्वगन्धा के काथ में तैल पाककर व्यवहार करने का उपदेश है (“कल्पोऽयमश्वगन्धायाः " - चि०२८ श्र० ), पर दक्षीण चिकित्सा के अन्तर्गत अश्वगन्धा
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्र
का नामोल्लेख भी नहीं । सुश्रुतोक्त वातव्याधि चिकित्सा के अन्तर्गत अश्वगंध का नामोल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता । चरक में अश्वगन्धा का वर्ग में पाठ आया है।
यूनानी मतानुसार
प्रकृति-उष्ण व रूक्ष २ कक्षा में (पिच्छिल आर्द्रता के साथ ) । हानिकर्त्ता- - उष्ण प्रकृति को । दर्प-कतीरा श्रवश्यकतानुसार। प्रतिनिधि- समान भाग बहमन सफ्रेद ( वा मधुर कूट तथा सूरिञ्जन ) । मात्रा -४ से ६ मा० । प्रधान कर्म -- कामशक्तिवद के तथा कटिशूल के लिए हितकारक है। T
गुण, कर्म, प्रयोग-कास, श्वास तथा श्रव यत्रों के शोथ को लाभप्रद है। शरीर, काम, कटि और गर्भाशय को शक्ति प्रदान करता, रस्लेष्म विकार को शमन करता और श्रमवात (गठिया) के लिए कटु सूरिआन की प्रतिनिधि है । (निविंबैल ) म० मु० ।
नोट - यूनानी ग्रंथों में असगंध के गुणधर्म प्रायः श्रायुर्वेदीय ग्रंथों की नकल मात्र हैं ।
For Private and Personal Use Only
नव्यमत
श्रसगंध वल्य, रसायन एवं अवसादक है । असगंध की जड़ का चूर्ण दुग्ध किम्वा घृत के साथ बालकको सेवन करानेसे वह पुष्ट होता है । अश्वगन्धा का रसायन रूपसे खण्डमोदकादि रूप में जराकृत दौर्वल्य तथा वातरोगों में व्यवहार करते हैं । वातज दौर्बल्य एवं प्रदर में एतदेशीय रमणीगण श्रन्यान्य बहुपोषक द्रव्यों के साथ अश्वगन्धाका उपयोग करती हैं। अश्वगंधा के पत्र को एरण्डतैलमें सिक्त कर स्फोटकादि के ऊपर स्थापित करने से वह अंग सुप्त हो जाता हे अर्थात् तत्स्थानीय त्वक् स्पर्शज्ञान रहित हो जाता है । बधिरता में नारायण तैल ( जिसका अश्वगन्धा एक उपादान है ) का नस्य एव पक्षाघात, धनुस्तम्भ, वात एवं कटिशूल में इसका अभ्यंग और श्रामरक्रातिसार ( प्रवाहिका ) विशेष एवं भगंदर में इसका अनुवासनवस्ति ( Enema ) रूप से प्रयोग करते हैं। शिशु कार्य,