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वल्गुज. वीजम्
बकुची-हिं० । हाकुच-बं० । ( Vernonia anthelmintica ) भा० पू० १ भा० । भैष० कुष्ठ० चि० ।
अवल्गुज वोजम् avalguja-vijam श्रवल्गुजोजम् avalguji-jam
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सं०ली० सोमराजी बीज, बकुची | Vernonia anthelmintica. (The seeds
of-)
वल्गुजादि लेपम् avalgujádilepam-सं० क्लो० बकुची, कसौंदी, पमाड़, हल्दी, सैन्धव और मोथा इन्हें समान भाग ले काजी में पीस कर लेप करने से उम्र कण्डू (खुजली ) का नाश होता है । च० सं० ।
(स) कथिका avashakthiká सं० स्त्री० ( १ ) जानु देश । (२) पद बन्धन बस्त्र विशेष । अवशिष्ट avashishta - हिं० वि० [सं० ]
बच्चा हुन । बच्चाखुचा । शेष । बाकी । उच्छिष्ट । aar बचाया । ( Left, remaining.)। अवशेष avashesha - सं० पु०, हिं० संज्ञा पुं० [वि० अवशेष, श्रवशिष्ट ] ( १ ) अन्त, समाप्ति | (२) बची हुई वस्तुः । तलछट । ( A residue, -- å remnant.)
वि० [सं०] बचा हुआ । शेष | बानी | अवशेषित avasheshita - हिं० वि० [सं० ] बचा हुआ । शेष | बाक़ी । 1
अवश्य: avashyab अवश्या - avashyá
-सं० पु०, स्त्री० तुषार, शीत, पाला, हिम, बर्फ । ( Frost, cold, ice or snow. ) | भा०म० ४ भा० शिरोरोग, श्र-विभेदक | "प्राग्यतावश्याय मैथुनैः ।" भल्ला० गुड़ ।
अवश्याय: avashyáyah - सं० पु० अवश्याय avashyáya - हिं० संज्ञा पुं०
शिशिर ( Cold )। च० द० पि० ज्व० : मृद्वीकादि० । “श्रवश्यायस्थित पाकम् ।” (२) तुषार, हिम, पाला ( Frost, cold ) । भा० म० ४ मा० नासारो० । “श्रवश्यायकर्मैथुन. वाष्प सेकैः । ( ३ ) झींसी । - झड़ी ।
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अवसन्नता
श्रवश्रयण avaşhrayana - हिं० संज्ञा पुं० [सं०] चूल्हेपर से पके हुए खाने को उता कर नीचे रखना ।
अवश्याया avashyaya-सं० स्त्रो० कुज्झटिका । See-Kujjhatiká.
श्रवष्टम्भः avashtambhah-सं० पु० अवष्टम्भ avashtambha हिं० संज्ञा पुं०
[वि० वष्टध] स्वर्ण, सोना | Gold (Aurum.) मे० । ( २ ) श्राश्रय, सहारा | अवटुञ्ध avshtabdha - हिं० वि० [सं०] जिसे सहारा मिला हो | श्राश्रित । श्रवष्वाणम् avashvanam-सं०ली० भक्षण । (Eating. ) हे० च० ।
अव सक्थिका ava- sakthiká-सं० खी०, हिं० संज्ञा स्त्री० खटिया, खट्टिका, खट्टा, खाट | पर्याय- पर्य्यस्तिका, परिकरः पर्य्यङ्कः । हे० ।
अवस्था avastha - हिं० स्त्री० प्रकृति की हालत जैसे ठोस, तरल वा वायवीय । (State.) अवस्था परिवर्तन avasthá parivrttan
- हिं० पु० (Change of state. ) पदार्थ की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिगति | इसका मुख्य कारण ताप है । अस्तु जब हिम, मोम वा जमे हुए घी को उष्ण किया जाता है, तब वे द्रवीभूत हो जाते हैं । यदि उन्हें तपाना जारी रखें, तो उनके वाष्प बन कर उड़ जाते हैं । और वाष्पों को यदि शीतल करें तो वे पुनः पूर्वावस्था को यथाक्रम प्राप्त हो सकते हैं। श्राधुनिक रसायनशास्त्र के अनुसार इसे ही “अवस्था परिवर्तन" कहते हैं ।
अवसन्न avasanna - हिं० वि० [सं०]
शान्त, क्लान्त, थका हुआ, उदास । ( २ ) जड़ीभूत, स्वकार्य्याक्षम, सुन, स्पर्श शून्य, निःसंज्ञ । अवसन्नता avasannata - हिं० संज्ञा स्त्री०
सुन्न हो जाना; निश्चेष्ट होना, काय सुप्तता, स्पर्शाज्ञता, स्वक् शून्यता, त्वक्स्वाप, संज्ञानाश, कार्याक्षमता, जाड्य । यह स्पर्शशक्ति के विकार
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