________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भर्द्धन
१९.
अर्जुन
होता है । जलीय रसक्रियामें २३ प्रतिशत खटिकके लवण और १६ प्रतिशत कषायीन (Tannin) यह दो द्रव्य वर्तमान होते हैं। ऐलकोहल द्वारा रसक्रिया प्रस्तुत करने पर कषायीन के सिवाय अत्यल्प मात्रा में रक्षक प्रदार्थ प्राप्त हुआ।
-को० । महिबिल्लि-मट्टि, मदि-मैसू० । नौक्क्यान-बर० । अर्जुन-बम्ब० । कुम्बुक -सिंहल.।
हिमज वा हरीतकी वर्ग (.1.0. Combreticex.) उत्पत्ति-स्थान यह वृक्ष दक्खिन से अवध तक नदियों के किनारे होता है। यह बरमा और लङ्का में भी होता है। उत्तरी, पश्चिमी प्रांत, हिमवती पर्वत मूल, संयुक्त प्रांत, बंगप्रदेश तथा मध्य भारत, दक्षिण विहार और छोटा नागपुर ।
वानस्पतिक-वर्णन-इसके वृक्ष अत्यन्त विशाल ३०-३२ हाथ अर्थात् ६० से ५० फीट उच्च तथा पतनशील (पत्र) होते हैं। इसका काण्ड अत्यन्त स्थूल होता है। बंगदेश में वीरभूम्यञ्चल में यह प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता है । यह एक प्रारण्य वृक्ष है। पत्र नरजिह्वाकार, पत्रपृष्ट में वृन्त के सन्निकट दो अर्बुदाकार ग्रंथियाँ इस प्रकार लगी होती हैं जिनको पत्र के ऊपर की ओर से देखने से वे दिखाई देती हैं, ऐसा बोध नहीं होता। बैशाख तथा ज्येष्ठ में इसमें पुष्प लगते हैं। पुष्प पात्यन्त सूक्ष्म, हरिदाभ श्वेतवण के और पुष्प दण्ड के चतुर्दिक स्थित होते हैं। केशर केशवत् सूक्ष्म एवं उच्च होते हैं । फल अगहन और पौष में परिपक्व होते हैं। फल देखने में कर्मरंग के समान लम्बाई की रुख उच्च तीरणिकाओं एवं तन्मध्य गंभीर परिखानो से युक्त फाँकदार होते, किंतु तदपेक्षा खाकार एवं तादृश मांसल नहीं होते हैं। नवीन त्वक् अामलक वल्कवत् बाहर से राम धूसर तथा भीतर से अरुणवर्ण का होता है। स्वाद ग्राह्य कषाय होता है।
रासायनिक-संगठन-ग्रन्थ संकेतों से यह प्रगट होता है कि बहुशः पूर्व अन्वेषकों को उन श्रोषधि यथेट अभिरुचि प्रदान करचुकी है। हूपर ( १८६१) के अनुसार इसकी छाल में ३४ प्रतिशत भस्म प्रात होती है जिसमें लगभग सम्पूर्ण शुद्ध खटिक कार्बनित अर्थात् चूर्णोपल या खड़िया मिट्टी ( Calcium carbonate)
घशाल (१९०६ ) ने इसकी छाल का विस्तृत रासायनिक एवं प्रभाव विषयक अध्ययन किया। उनके अनुसार इसमें निम्न लिखित द्रव्य पाए गए
(१) शर्करा, (२ ) कषायीन, (३) रक्षक पदार्थ,(४)ग्लूकोसाइड के समान एक पदार्थ
और (५) कैल्सियम तथा सोडियम के कार्योनेट्स और किश्चित् क्षारीय धातुओं के हरिद (Chlorides)। उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि सम्पूर्ण कपायीन १२ प्रतिशत और भस्म ३० प्रतिशत हुई।
परन्तु, पार० एन० चोपग महोदय एवं उनके सहयोगियों ने उत्तम शुद्ध वल्कल को एकत्रित कर, इसके उस प्रभावारमक सत्व की प्राप्ति हेतु, जिसको उक्र श्रोषधि के हृदयोत्तेजक प्रभाव का मूल बतलाया जाता है, इसका अत्यन्त चतुरतापूर्वक विश्लेषण किए। कहा जाता है कि इसमें ग्लूकोसाइड्स वर्तमान होते हैं। प्रस्तु, उनकी विद्यमानता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अत्यन्त ध्यानपूर्ण शोध की गई । परन्तु इसके बल्कल में न ऐल्कलाइड ( शारोद) और न तो ग्लूकोसाइड ही प्राप्त हुए और न सुगंधित धा अस्थिर तैल के स्वभाव का ही कोई द्रव्य पाया गया। आपके अनुसार वल्कल में निम्न पदार्थ वर्तमान पाए गए
(१) अल्प मात्रा में एल्युमिनियम (फटिकम) तथा मग्नेशियम (मग्नम) लवणों के सहित असाधारणतः बहुल परिमाण में स्खटिक (Calcium ) के लवण ।
(२) लगभग १२ प्रतिशत कषायीन जिसमें प्रधानतः पाइरोकैटेकोल टैनिन्स ( Pyroca. techol tannins ) वर्तमान होता है।
For Private and Personal Use Only