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भनेरुल्ली
अनेरुल्ली aunelli-ता० हरफा रेवड़ी, लवली। अरुषासः arus has a!!-सं० ० रोप रहित । अरुनोदय arunodaya-हिं० संज्ञा पु० दे०- अथ० । सू० ३। ३ । का० ३ । अरुणोदय ।
अरुष्कः arushkah-सं० पु. अरुन्धती arundhati सं० स्त्री० जिह्वान । जिह्वा अरुष्क arushka-हिं0 संज्ञा पु. - की नोक वा फोंक । ( The foretongue.)
भल्लातक वृक्ष, भिलावाँ । भेला गाछ-बं० । चै० निध० । दे०-अरु धतो।
विववा-म० | ( Semecarpus anac
ardiuin-) भा० पू० १ भा० । रा०नि० अरुंधतो arundhati-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं०
व. ११ । अरुन्धती] (१) बहुत छोटा तारा जो सप्तर्षि |
अरु करः arushkarah-सं० पु. (.) मंडलस्थ वशिष्ठ के पास उगता है। सुश्रुत के
भल्लातक वृत, भिलावाँ । ( Semecarpus के अनुसार, जिनकी मृत्यु समीप होती है, वह
anacardium.) प० मु० । रा०नि० इस तारे को नहीं देख सकते।
व०११ । भा० पू० १ भा० । मद०व०१। (२)तंत्र के अनुसार जिह्वा ।
(२) अरुषिका । -त्रि० (३) अणकृत, (३) घाव को पूरने वाली श्रोषधि, ब्रणपूरक
व्रणजनक । मे० रचनुष्का औषध, अरुष | अथर्व० । सू० २।२।
अरुष्करम arushkaram-सं. क्ली० भलातक का०४।
फल, भिलावाँ ( Semecarpus ana. अरुषिका arunshika-स.स्त्री०,हिं० संज्ञा स्त्री०
cardium.) च० द० अर्श चि०। भैष. एक तुद्र रोग जिसमें कफ और रक के विकार या
कुष्ठचि० पञ्चतिक धृत । "सनागरारुष्कर वृद्धकृमि के प्रकोप से माथे पर अनेक मुंह वाले
दारकम् ।" सिम्यो० चतुः सम लौह । १० सू० फोड़े हो जाते हैं । शिरोवण । बुद्ररोगान्यतम
४ . कुष्ठनव.। कपाल रोग भेद । मा०नि० ।
अरुस arusa-हिं० पु. अडसा, वासक । अरुवा alluvā-हिं० संज्ञा पुं० [सं० अरु ] !
(Adbatoda vasika.) (1) एक लता जिसके पत्ते पान के पत्ते के ।
अरुसिमन arusiman-यू० बज्र ल-खम-खुम, सदृश होते हैं । इसकी जड़ में कन्द पड़ता है, और लता की गाँठों से भी एक सूत निकलता है
बल-हवह, कसीस-अ० । कदम-इस्फहान ।
मारदरख्त । किरमान | दरीना | तबीज । (Lepi. जो चार पाँच अंगुल' बढ़कर मोटा होने लगता है और कन्द बनता जाताहै। इसके कन्दकी तरकारी
dium iberis, Linn.)-ले०। (Pepp. बनती है । यह खाने पर कनकनाहट पैदा करता
el grass, pepperwort)-01Passeहै । बरई लोग इसे पान के भीटे पर बोते हैं। rage iberide-फ्रां० । देखो तोद्री । __संज्ञा पुं० [हिं० रुरुपा] (An owl.) फा० इं०१ भा०। उल्लू, उलूक पक्षी । हिं० श० सा०।
प्ररुवारणम् ausranam-सं० वी०(१) व्रण या अरुषः alushah-सं० पु. (१) व्रण, क्षत दोषों को शीघ्र पकाने वाली औषध । (२)व्रण,
(Vranah.)। (२) घोटक, अश्व । (Horse.) __फोड़ा। अथर्व । सू०३।४। का०३। वै. निघ० । (३) व्रणपूरक औषध, अरु- भरुहा aruha -संस्त्री०, -हिं. संशा पु. न्धी । अथव० । सू० १२ । का०४।
___ भूधात्री, मुँई प्रामला, भूम्यामलकी । (Phy. अरूषा,टा arusha-ta-सं० स्त्रो० भूम्यामलको, llanthus neruri.)
मुँई प्रामला । (Phyllanthus neruri.) | अरुक āar qa-अ० स्वेदक औषध । ( Diaph. .. रा०नि० व०५:
____ oretic)
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