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अरण्यकासनी
भरण्यचटक:
मात्रा-प्राधा से २ लइड ड्राम( १८ से पहिले बहुधा पित्तरेचक वा मूत्रल रूप से इसे ७.१ घनशतांश मीटर )।
यकृद्रोगों जैसे-पांडु तथा जलोदर प्रभृति में (३) अरण्य कासनी स्वरस-सकस , अधिकतया व्यवहार में लाते थे। किन्तु, अब टैरेक्सेसाई ( Succus taraxaci)-ले। - इसका उपयोग बहुत कम हो गया है। जूस ऑफ़ टैरेक्ज़े कम् (Juice of Tarax. |
प्राण्य कुकुटः lanya-kukkutab-सं० acum)-इं० । असीर कासनी बरी, असीर
पु वन मुर्गा, कोम्ड़ा, वनमोर्गा-हिं० । वनकुक्कुट तख्रश्न -अ०, फ़ ।
-सं० । वन कुक्ड़ो-बं० । राण कोंबड़े-मह । निर्माण-कम-टैरेक्जे कम् की ताजी जड़ को
(Wild Cock or hen. ) कुचल कर दबाने से जो रस प्राप्त हो उसमें तिगुना मद्यसार मिलाएँ और सात दिवस
____गुण इसका मांस हृद्य, लघु, और कफनाशक पश्चात् फिल्टर करलें (पोतन करलें)।
- है। रा०नि० २० १७ । वृहण, स्निग्ध, उष्णमात्रा-1 से २ फ्लइड ड्राम=( ३.६ से |
वीर्य, गुरु और वातनाशक है । मद० व. १२ । ७.१ घन शतांश मीटर )।
अरण्य-कुलिस्थिका aranya-kulitthiki प्रतिनिधि-अमिराव ( Launea
अरण्य-कुलित्था,-स्थी aranya-kulittha,-! Pinnatifida, Cass.) लैक्टक हेनिएना,
. . tthi) ( Lactuca. Heyneana D. c.)... : -सं० स्त्री०(१)वन कुलथी, कुलत्था । वन कुर्ति
1. कलाय-बं०। रा०नि०व०५(२)(A blue हिरनखुरी ( Emilia sonchifolia, D.
stone used asacollyrium.)कुलत्थाC. ) और सॉस प्रॉलिरेसिअस (Sonchus Oleraceus, Linn.) विस्तार के लिए उन
ञ्चन, कृत्रिम अञ्चन विशेष । रा०नि००१३। उन नामों के अन्तर्गत अवलोकन करिए।
कालशुर्मा-हिं० । देखो-कुलस्थाअनं । . प्रभाव तथा उपयोग-टैरेक्सेसाई रैडिक्स | अरण्य-कुसुम्भः aranya-kusum bhah-सं. (भरण्यकासनी-मूल ) चिरकाल से बन्य,
वन कुसुम, वन कुसुम्म सुप । जंगली कड़ पित्तरेचक, मूत्रल और कोष्ठ मृदुकारी रूप से | . (बरें)। राण कड़ई, राण कुसुम्भ-मह० । वन प्रसिद्ध रहा है। ताजे स्वरस का बल्य प्रभाव, जो कुसुम-बं० | गुण-कटुपाकी, कफनाशक, तथा प्रयोग से ठीक प्रथम प्रस्तुत किया गया हो अथवा | .: दीपन । रा०नि० व० ४।। जो जड़ को एकत्रित करने के टीक पश्चात् अभी | अरण्य-कोलिः aranya-kolih-सं० स्त्री० वनजब कि वह कटु हो, निर्मित किया गया हो, ____ कोलि, बन बदरी । वन कुल-बं० । (Zizypनिश्चित रूप से उत्तम होता है। वह बहुशः |:- hus jujuba. ) प्रभावकारी बल्य औषधों का लाभदायक अनुपनि है । इसके सत्व प्रायोगिक रूपसे प्रभाव
अरण्य-गवयः aranya.gavayah-सं० पु.
जंगली गाय, वन गवय, वन गऊ । यह कूलचर हीन होते हैं और इसकी अड़ द्वारा निर्मित
जाति की है। सु० सू० ४६ ५० । देखोऔषध व्यर्थ । त्रि० फा० हिट्ला ।
कृलेचर। .. ताजी जड़ का रस या इसका शीतकषाय
अरण्य घोली,-लिका aranya-gholi,--lika केलम्बा के समान प्रामाशयबलप्रद प्रभाव करता है तथा यह किसी प्रकार कोष्ठ मृतुकारी भी
-सं० स्त्री०(१)वनधोली नामक प्रसिद्ध पंत्रशाक है। परन्तु इसके वे प्रयोग जो अंग्रेज़ी औषध
विशेष, घोली शांक | रा०नि०व० ।। (२) विक्रेतात्री से उपलब्ध होते हैं, उनका प्रभावा
मन्थनदण्ड । मक होना सन्देहपूर्ण विचार किया जाता है। अरण्यचटक; aranya-chatakah-सं०पू०
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