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अम्लिका
अस्मिकर
.... मदात्यय एवं धुस्तुरजन्य उन्मत्तता में इमली ....के फल का गूदा हितकारक है। फलस्वभस्म
का उक्र प्रकार की अन्य औषधों के साथ क्षारीय दव्य रूप से औषधीय उपयोग होता है । (दत्त हिन्दु मेटीरिया मेडिका)।
धतूर प्रभृति के वेग उतारने के लिए खजूर, दाख, इमली का गूदा, अनारदाना, फालसे और श्रामले सबको सम भाग ले तथा बारीक पीस और इसमें पच गुना पानी मिला अोटाकर काढ़ा प्रस्तुत कर उपयोग करना चाहिए। .
मात्रा--१० ( २ अाउस ) च० द०। जिस प्रौपध के साथ यह दी जाती है उसके प्रभाव को बढ़ा देती है। परन्तु शीरा रेवन्दचीनी के साथ इसके मिलाने से उसका प्रभाव कम हो जाता है। .. कभी कभी इमली के वृक्ष से एक प्रकार का | तरल स्राव होता है, जिसको नोर कहते हैं। लगभग इसका सर्वांश काउिन खटिक (Oxal. ate of calcium) होता है। ये श्वेत स्फटिकीय पिण्ड रूप में शुष्क होजाते हैं । (फा० ई० १भा०) .. .
विसीयन लोग-पेट के मरोड़ के रोग में | तथा पाचनशक्रि बढ़ाने को इमली के बीज को
अन्य औषध के साथ मिला कर बर्त्तते हैं। .... सोलान (लङ्का) द्वीप में यकृत और प्लीहा
की गाँठ होने में इमली के फल की एक प्रकार . की मिठाई बनाकर रोगी को देते हैं। पत्तों को . उबालकर उसको सेक करने में प्रयुक्र करते हैं।।
इमली के वृक्ष के नीचे सोने से रोग होता है, ..परन्तु.नीम के पेड़ के नीचे सोने से सर्व रोग दूर | होते हैं । इमलीके गोंदका चूर्ण करके नासूर (नाड़ी
व्रण)के घाव पर बुरकते हैं, इससे क्षत शीघ्रपूरित ' होजाता है । पत्तों को शीतल जल में भिगा के
अभिष्यंद में खो पर तथा नासूर के घाव पर बाँधते हैं । बीज को पीस जल में मिला गाठ पर चुपड़ने से उसके भीतर तत्काल राध पड़कर वह विदीण होजाता है।
के. एम० नदकारणी-प्रभाव-अपक्क फल,
अत्यम्ल । पक्वफलमज्जा-शैत्यकारक, प्राध्मानहर, पाचक, कोष्ठमकर, मूल्यवान स्कर्वीहर (Antiscorbutic) और पित्तनाशक है। बाज-संग्राहक, कोमल पत्र तथा पुष्प शेत्यकारक तथा पित्तन हैं। बीज कारक वर्णीय बहिर त्वक मदु संग्राहक और वृक्षत्वक संग्राहक व बल्य है।
उपयोग-एक वा दो वर्ष की पुरानी पकी इमली यकृत, श्रामाशय तथा प्रांत्रनैबत्य में हितकर है। प्रथम पक्वफल मलावरोध में लाभदायक है। भारतीय श्राहारमें इमली चटनी, कढ़ो तथा शर्बत रूप से बहुत उपयोग में प्राती है। कोष्ट मकर रूप से यह बालकों के ज्वर में भी हितकर है। इस हेतु इमली, श्रमजीर और भालुबोखारा इनका शर्बत प्रस्तुत कर १ से २ ड्राम की मात्रा में उपयोग किया जाता है।
१ आउंस (२॥ तो०) इमली का फल और १ पाउंस खजूर इनको पाव सेर दुग्ध में क्वथित कर छान लें। इसमें किञ्चित् लवंग तथा इला. यची और रत्ती श्राध रत्ती कपूर सम्मिलित करने से उत्तम कोष्टमृदुकर पानक प्रस्तुत होता है। यह ज्वर अंशुघात और प्रादाहिक विकारों में लाभदायक है। __ स्कर्वी (Scurvy) के नाशन व प्रतिषेधन हेतु इमली उत्तम है। ... प्रवाहिका में इसके बीच का चूर्ण प्रयोग में श्राता है। - गुल्फ तथा संधि-शोथ पर सूजन एवं वेदना को कम करने के लिए अम्लिका पत्र को जब के साथ कुचलकर इसकी पुल्टिस बांधते हैं।
तिन्तिड़ी-फल-मजा एवं पत्र को कथित कर बनाया हुआ धन शर्बत, उत्तापाधिक्य एवं दग्धजन्य शोथ के निवारणार्थ उत्तम है।
मन्द क्षतों की स्वास्थ्यकर-क्रिया अभिवृद्धि के लिए इमली के पत्र का काथ धावन रूप से उपयोग में आता है। - प्रवाहिका में इसके पत्तियों के स्वरस को बाल किए हुए लोहे से चौंक कर देते हैं। पुरातन
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