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अम्लिका
अम्लायनी
५४५ अम्लायनो amlāyani-सं० स्त्री० मल्लिका
भेद । नेवारी हिं०। नेवाली-मह०। वै० निघ। अम्लावल amlavala-सं० अमली, चिञ्चा,
अम्लिका । (Tamarindus indica). अम्लि का amlika-सं० स्त्री०, हिं० संज्ञा स्त्री०
(१) अाम्र, श्राम | (Mangifera Indica) रा०नि० व०३। (२) पलाशी लता ( Palashi )। (३) माचिका, मोइया । रा०नि० व० २३ । ( ४ ) अम्लोद्गार, खट्टा डकार । मे० । (५) अमला ( Phyllanthus emblica)। (७) श्वेताम्लिका । (८) चाङ्गरी । ( Rumex Corniculata ) रा० नि० व० २३ । (6) अर्श रोग में तिन्तिड़ी अर्थ में और सर्वत्र दीपन और पुरीषसंग्रहणादि योगों में अम्लिका श्यामरछद एवं वृद्धदारक के अर्थों में प्रयुक्त हुई है। सि० यो० अग्निमुख चूर्ण वृन्द । सि. यो० अरोच. चि०।(१०) अमली, अम्बली, इमली, कटारे-हिं० । अम्ली, अम्ली का बोट, अम्बली-द० । चिञ्चा, अम्लिका (प.), तिन्तिडीकः, तिन्तिडीका, तिम्तिड़िकं, अम्लीका, प्राम्लिका, आम्लीका, तिन्तिलीका ( अ० टी०), वृक्षाम्लं, तिन्तिड़ि: (वै० ), तिन्तिली, तिन्तिड़िका, प्राब्दिका, चुक्र, चुक्रा, चुक्र, अम्ला, अत्यम्ला, भुका, भुक्रिका, चारित्रा, गुरुपत्रा, पिच्छिला, यमदूतिका, चरित्रा ( शब्दर०), शाक चुक्रिका, सुचुक्रिका, सुतिन्तिड़ी, चुक्रिका, अम्ली, दंतशठा, चिंचिका-सं० तेतुल, तेतुल गाछ (वंश०), तितूरी, आम्ली, तेतै ( स० फा० इ० )-बं० । तम(म्)रे हिंदी, हुमर, ह मर, सबारा (स० फा. इं.), हबारा, जोश-अ० । अम्बलह, तमरोहिंदी खाये-हिन्दी-फा. | टैरिण्डस Tamarindus, टैरिण्डस इण्डिका (Ta. marindus Indica. Linn. )-moi टैरिण्ड Tamarind-ई० । टैट्रिनिएर
डी' इण्डी ( Tamarinier de I' | Inde. )-फ्रा० । टैमरिण्डी ( Tama-|
rindi)-जर० । पुलि, पुलियम-पज़म-ता०। चिण्ट-पण्डु, चिण्ट-चट्ट-ते०। पुलियम-पज़म ( स० फा० ई०), पुलि, पलम ( ई० मे० प्लां0)-मल । हुणिसे, हणिसिनयले, हणशेहएणु-कना० । चिंच, चिंचोक, चिञ्चा, चिण्ट्ज, इम्ली-मह । श्राम्बली, प्राम्बलीनु, चिचोर -गु० सियम्बुल-सिं०। मगि-बर्मी । श्रासामजव ( बीज )-मल०। कँाँ-उत्०, उड़ि | करङ्गी-मैसू० । इम्ली-40। टिएटज वम । तेतूलि-उड़ि।
शिम्बी वर्ग (N. 0. Leguminose ) उद्भव-स्थान-एशिया के बहुत से भाग, भारतवर्ष, बर्मा तथा अफरीका (मित्र), अमेरिका
और पूर्वीय भारतीय द्वीप।। ___ संज्ञा-निर्णय-इसकी अंगरेजी वा लेटिन संज्ञा टैमारिण्डस इसकी अरबी संज्ञा तमरहिंदी से, जिसका अर्थ हिन्दी खजूर है, व्युत्पन्न है।
वानस्पतिक-वर्णन-इसके वृक्ष से प्रायः सभी लोग परिचित हैं। इसके वृक्ष बहुवर्षीय, विशाल एवं सशाख होते हैं ।देखो-इमली ।
नोट-वृक्षाम्ल और तिन्तिड़ी पृथक् पृथक् वृत्त हैं । वैद्यक में इनके गुण-पर्याय पृथक् लिखे हैं । वृक्षाम्ल का पर्याय तिन्तिड़ी लिखा है, और तिन्तिड़ी के पर्यायों में वृक्षाम्ल शब्द का उल्लेख है। वृक्षाम्ल के वृक्ष उत्तर पश्चिमाञ्चल में विषाम्बिल (वृक्ष) नामसे प्रसिद्ध हैं। ये देखने में अत्यन्त शोभायमान होते हैं। पत्र दीर्घ एवं चिकण होते हैं। ये वसन्त ऋतु में फलते हैं। फल निम्बुक फलवत् होता है। वृक्षाम्ल नाम इसकी सर्वथा अन्वर्थ संज्ञा है। इस हेतु इसको "शाकाम्लं", "चूड़ाम्लं", "फलाम्लं" और "अम्लबोज" कहते हैं। यह चतुरामन तथा पञ्चाम्ल का एक अवयव है । इसका वानस्पतिक वर्ग भी यही अर्थात् वृक्षाम्ल वर्म ( Guttiferee) है।
इसके पर्याय निम्न हैवृक्षाम्ल-सं० । विषा(षां)विल-हिं० । श्रमसूल, कोकम-धम्ब० । ( Garcinia
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