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अम्लवेतसः (क:)
अम्लवेतसः
अम्लवेतसः(क: ) anilavetasah,-ka h )
सं०पू०, क्लो अम्लन anlave ta-हिं० संज्ञा पु.
श्रमलबेत, अम्ल बेत। यह एक प्रकार की लता है जो पश्चिम के पहाड़ों में होती है और जिसकी सूखी हई टहनिया बाजार में बिकती हैं। ये खट्टी होती हैं और चरण में पड़ती हैं। (२) चुक। चुके का शाक, चुक पालक | चुकापाल बं० । (Rumex acetosella) ए०मु०। (३) अललाणा। (Oxalis comiculata.) च० ६० काङ्काय० गु०। (४) स्वनामाख्यात लप विशेष। एक मध्यन आकारका पेड़ जो बागों में लगाया जाता है। च० द० । च०६० ज्व. चि०। “सिन्धुत्र्यूषणैः साम्ल वेतः" । च० सू०२०।
संस्कृतपर्याय---अम्लः, बोधिः, रसाम्लः, श्राम्लवेतसः, वेतसारतः, अम्लसारः, शतवेधो, वेधकः,भीमः भेदनः, अल्लांकुशः, भेदी, राजाग्लः, अम्लभेदनः, रसार:, फलारलः, अम्लनायकः, सहस्त्रबेबी, वीराम्लः, गुल्मकेतुः, घराभिवः, शंख दाबी( वि), मांसदावी (रा), वरांगी (र), चुक्रः (अ), गुल्महा, रक्तस्रावि, सहस्त्रनुत् ।
अमलबेद, अमलवे (बे ) त ( स ), थैकल -हिं। थैकल (ड)-बं० । चूका-मह० । अम्लवेत-गु०। तुर्षक-फा०। रयुमेक्स वेसिके रियस ( Rumex vesicarius, linn.), रयुमेक्स क्रिस्पस ( Rumex crispus) -ले० । कण्ट्री या कॉमन सारेल ( Country or Common sorrel )-इं।
... अम्लवेतसवर्ग (N. 0. Polygonacec ). उत्पत्ति स्थान-भारतवर्ष ( कोच बिहार )। __ वानस्पतिक-वर्णन-एक मध्यम श्राकार का पेड़ जो फल के लिए बागों में लगाया जाता है। पत्र वड़ा, चौड़ा और कर्कश होता है। अषाढ़ में इसमें पुष्प लगते हैं । पुष्प स फेद होता है । शरत् काल में फल पकते हैं । फल गोल नाशपाती के आकार के, किन्तु उसकी
अपेक्षा दुगुने वा तिगुने बड़े कच्चे पर हरिद्वर्ण के और पकने पर पीले और चिकने होते हैं। इसको थै कल कहते हैं। इस फल की खटाई बड़ी तीक्ष्ण होती है । इसमें सूई गल जाती है। यह अग्निसंदीपक और पाचक है, इस कारण यह चूरण में पड़ता है। यह एक प्रकार का नीबू है।
कोचविहार राज्य में सर्वत्र पालवेतस के वृक्ष प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते हैं । राजनिघण्टुकार ने यथार्थ ही लिखा है, "भोट देशे प्रसिद्धम्" । हमारे देश में जिस प्रकार अाल को काट सुधाकर रखते हैं उसी प्रकार कोचविहारमें वहाँ के निवासी श्रमलथेत के पके फल (थैकल ) को काट सुखा .... कर रखते हैं। कोई कोई इस प्रकार सुखाए हुए थैकल को दीर्वकाल तक सर्पप तेल में भिगो कर रखते हैं। और इस तेल को वायु प्रशमनार्थ प्रयोगमें लाते हैं। शुष्क थैकल बहुत चिमटा होता है और सहज में चूर्ण नहीं होता। प्रयोगांश-फल ।
प्रभाव तथा उपयोग श्रायुर्वेदीय मतानुसार ---
अमलवेत कसेला, कटु, रूक्ष, उप्ण है तथा प्यास, कफ, वात, जन्तु, अर्श, हृद्रोग, अश्मरी और गुल्म को जीतता है । (धन्वन्तरोय निघ
अम्लवेत अत्यम्ल, कषेला एवं उष्ण है और वात, कफ, अश, श्रम, गुल्म तथा अरोचक का हरण करने वाला है तथा भोट देश में प्रसिद्ध है। (रा०नि० व०६) । अत्यन्त खट्टा, भेदक, हलका, अग्निवर्द्धक, पित्तजनक, रोमांचकारक और रूक्ष है । इसके सेवन करने से हृद्रोग, शूल, गुल्म रोग, मूत्रदोष, मलदोष, प्लीहा, उदावत', हिचकी, अफरो, अरुचि, श्वास, खाँसी अजीर्ण, वमन, कफजन्य रोग और वातव्याधि दूर होती है। इससे बकरे का माँस पानी हो जाता है (अर्थात् यह छागमांस द्रावक है), और जिस प्रकार चणकाम्ल (चने के तेजाब वा क्षार ) में लोहे की सूई गल
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