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प्रकाकिया
अकाकिया
जाता है। निर्माण-विधि-इसके फल और पत्तों को कूट कर रस निचोड़ लें। पुनः इसको छानकर मन्दाग्नि पर यहां तक पकाएँ कि यह गाढा होजाए। विवरण-यह भारी दृढ़ तथा प्रियगंधयुक्त होता है। इसके छोटे टुकड़े प्रकार के सामने देखने से । हरित बोतल के रंग के मालूम होते हैं; किन्तु कोई२ कुछ ललाई लिए हुए होते हैं। इसके बड़े । बड़े टुकड़े काले वर्ण के दीख पड़ते हैं। स्वादमधुर, कसेला और लुपाबदार होता है । शीतल जल में डालने से यह लुभाव रूप में परिणत हो जाता है और इसमें पीताभायुक्र धूसरवर्ण अथवा भूरापन लिए हुए हरे रंग के पदार्थ तैरते हुए। प्रतीत होते हैं । छानने के पश्चात् लुभाब का रंग बबूल गोंद के समान होता है। प्रकृति-३ कक्षा में (अशुद्ध ) ठण्डी और रूस | है । हानिकर्ता-रोध उत्पादक है। दर्पनाशक-रोग़न बादाम । प्रतिनिधि-चन्दन और रसौत । मात्रा-३॥ मा०।। अक़ाकिया-गुणधर्म-यूनानीग्रन्थकारों के जत से अकालिया बालोंको काला करता है। क्योंकि यह बालों की तरी को दूर करता है। सर्दी के फटे हुए हस्तपाद (विपादिका) के लिए गुणदायक | है, क्योंकि अपनी संकोचनीय शक्ति के कारण यह अवयवों से विच्छिन्न भागों को संकुवित एवं एकत्रित करता है, अवयव को बलवान बनाता और इसे फटने से रोकता है। दाखस (अंगुलबेड़ा )। के लिए लाभदायक है, क्योंकि इस में उरडक पैदा करता तथा माहाको लौटाता है। इसी कारण अन्य शोथों कोभी लाभप्रद है । मुह के क्षतों को दूर करता है क्योंकि उन रतूवतों को शुष्क कर देता है जो क्षतको पूरित नही होने देती। अपनी शकताके कारण संधियों की शिथिलता को लाभप्रद है। दृष्टि को बल देता और उसे सूचम एवं तीव बनाता है क्योंकि यह नेत्र की सान्द्र रतूवतों को जो रूहको ग़लीज़, करने वाली हैं, अभिशोषित कर लेता है। अाँव पाने में लाभ व शान्ति प्रदान करता है, क्योंकि यह आँत की
ओर मलों के बहाव को रोकना है। और नाखूना (नेत्रस्थ रक विन्दु) को ग्रीयों में डाला जाता है, क्योंकि यह दृष्टि को शक्ति प्रदान करता है,
और इसकी चिकित्सा में जो उष्ण तीरण एवं भक (अकाल) अपधिया उपयोग में पाती हैं उनकी पीड़ा से नेत्र को सुरक्षित रखता है। पान, अनुलेपन तथा वस्ति (हु कना) रूप से प्रयुक करनेसे यह कज पैदा करता है। प्रवाहिका रातोसार और रकबाब को गुण करता है। निकली हुई काँच (गुदभ्रंश) को असलो दशा पर लौटाता एवं उसको शिथिलता को दूर करता है, क्योंकि इसमें संकोचक शक्ति तथा रूक्षता विद्यजान होती है। उक्त अभिप्राय हेतु इसको खिलाते हैं अथवा इसे लेष रूप से उपयोग में लाते हैं । ( नको०)
अकाक्रिया या प्रकाकिया के प्रभाव तथा प्रयाग-कफ निस्सारक, वक्षःस्थलस्थ वेदना शामक, संकोचक,रस्थापक, म दुताजनक और बल कारक । श्रत प्रण लीस्य कलाओं तथा जननेन्द्रिय वा मूत्र सम्बन्धी अवयवों पर इसका सर्वोत्तम प्रभाव होता है। इसी कारण अतिसार, प्रवाहिका, सूज़ाक(पूयमेह), नासूर और पुरातन वस्तिप्रदाह प्रभति विकारों में यह अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होता है । यद्यपि अफीम तथा इसके कुछ यौगिकों की अपेक्षा यह कम प्रभावजनक होता है, तथापि उस अवस्था में, जब कि यह अकेला उपयोग में लाया जाए, समस्त वानस्पतिक तथा खानेज संकोचक श्रौषधों से अधिकतर प्रभावकारक प्रमाणित होता है। जलोदर के साथ जब अतिसार एवं प्रवाहिका हो तो अफीम और इसके यौगिक प्रायः हानिकर होते हैं। क्योंकि जिस मात्रा में ये अतीसार प्रभति को रोकते हैं उसी अनुपात में ये जलोदर को वृद्धि करते हैं। इसी कारण "अतक्रिया प्रांत्र रोगों में अफीम तथा इसके अन्य यौगिकों को अपेक्षा श्रेष्ठतर तथा लाभदायी औषध है। अक़ाकिया मासूल (धोया हुश्रा)-इसकी विधि इस प्रकार है-अक़ाक़िया को पानी में खरल
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