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अकरकरा
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नष्ट होता है ' शहत के साथ अकरकरा चूर्ण को चाटने से मृगी, अंधकार थाना और पचाघात प्रभते रोग नष्ट होते हैं ।
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करकरे के कपड़छन किए हुए बारीक चूर्ण को सूंघने से नाक रुकना अर्थात् श्वासावरोध दूर होता है 1 यदि इसको सिरके में भिगो दाँत के नीचे रखें तो दन्तशूल नष्ट होता है । चबाने या जिह्वा पर बुरकाने मे जीभ की आर्द्रता दूर होकर तुतलाना मिटता है ।
इसके क्वाथ को मुख में रखने से हिलते दाँत मजबूत होते हैं । उक्र कााथ में सिरका मिला कर गंडूष करने से गले का फोड़ा, काग का लटक आना तथा जीभ के लटकने ( जो कफ के कारण हो ) को लाभ पहुँचता है ।
पीस कर मर्दन करने से पसीना लाता है । केवल अकरकरा, या प्रकरकरा और फावानिया दोनों को गले में डोरेसे बाँधकर लटकाएँ तो बच्चे की मुगी दूर होती है । यदि इकरेंगे काले कुत्ते के बाल और अकरकरा दोनों की बालक के बाँध दे तो इन्द्रियों में चैतन्यता होम के रोग और नष्ट हो ।
अकरकरा के लड़क़ (अवलेह ) में शहद मिला के पीने से देह की कांति बढ़ती है, तथा छाती का दर्द, कक को पुरानी खाँसी एवं सरदी के रोग दूर होते हैं । यह श्रामालय से आँव को निकालता एवं शीतल प्रकृति वाले की मैथुन शक्ति को बढ़ाता है ।
यदि आधा दिन ( १ || मा० ) घोट के पिएँ तो बलपूर्वक कफ को जुलाब द्वारा निकालता है । ज्वर थाने से प्रथम अकरकरा को जैतून के तेल में पीस सम्पूर्ण शरीर में मालिश करें तो ज्वर, सरदी का लगना दूर होता है और पसीना लाता एवं देह के जोड़ ( संधियों ) की बीमारी दूर करता । अकरकरा के तैल को इन्द्रीपर मलने से इन्द्री हद तथा कामशक्ति प्रबल होती है, और मैन में विशेष आनन्द आता है । विधिपूर्वक शहद में घोल तिला ( पतला लेप ) करने से स्त्री को बहुत जल्दी स्खलित करता है । यदि
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अकरकरा
बाकला के थाटे के साथ घोट पोटली में रख इन्द्री और अण्डकोषों में बांधे तो गुण करता है, अर्थात् जिसके फोतों को बहुत सर्दी लगती हो उसे लाभ पहुँचाता है ।
X सबसे अद्भुत बात इसमें यह है कि इस 'को नौसादर के साथ बारीक पीस तालु और मुख में खूब लगाए अर्थात् रगड़े, तो आाग से मुंह कदापि नहीं जलता । अकरकरा को सिरके के साथ श्रौटाए तो खमीर के सदृश हो जाएगा। इसे कीड़े खाए हुए दांतों के ऊपर रखने से सब कीड़े भर के गिर पड़ेंगे ।
एक प्रक्रिया शुष्क अकरकरा को कूटे और सेर जल में tere जब एक श्रौक्रिया शेष रहे तब उतार शीतल कर हाथों से मलकर छान ले, फिर दो प्रक्रिया जेतून के तेल के साथ दुहेरी देग में मिलाकर काम में लाए ।
गुण- इस रोगन के पीने से पसीना निकल कर सर्दी का कर नष्ट होता है । यह सर्दी के यावन्मात्र रोगों को नष्ट करता एवं मैथुनशकि को बढ़ाता है ।
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अकरकरा का सड़त नाक में टपकाने से मस्तक पीड़ा, आधा शीशी तथा मृगी नष्ट होती है एवं यह शीतल व मस्तक को बलिष्ट करने में उत्तम हैं ।
जिगर के रोगों में अकरकरा की प्रतिनिधि पीपल और शहत है और आमाशय के रोगों में रासना और अगर । यदि समय पर ये दोनों न प्राप्त हों तो उनके स्थान में सोंड श्रौर इससे आधी काली मिरच लेनी चाहिए। गंडुष में पहाड़ी पोदीना डेढ़ गुना, हलक की पीड़ा में इलायची लेनी चाहिए। एवं अकरकरा के उसारे से निर्मित तैल लेना चाहिए ।
वामक व विरेचक श्रौषध पीने से पहिले यदि करकर खा लें तो फिर कड़वे, चरपरे,
पैले रस का कुछ भी ज्ञान न होगा । श्रतएव जिसको काथ श्रादि पीने से घृणा होती है हकीम लोग उसको प्रथम अकरकरा चबाने को देते हैं । जब वह चबाकर थूक देता है तो ऊपर से फिर जो काथ पिलाना हो पिलाते हैं ।