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अमलतास
अमलतास
सूचना-कास रोगी को इस योग का सेवन
(११) शियाफ़ ख़यार शंबर-(पारग्वध न कराएँ ।
फल वर्ति)-पारग्वध फल मजा, लाल शकर (5) श्रारग्वध वटिका-मरज़ फलस प्रत्येक ३ तो०, सनाय मक्की १॥ तो०, खिल्मी ख़यार शंबर ७॥ तो०, सामूनिय। मुशवी । ११ मा०, लवण ३॥ मा० । निर्माण-विधि(भुलभुलाया हुआ) ४॥ मा०, कतीरा : मा०, श्रौषधों को कूट पीस कर प्रथम दो औषधों के पीली हड़ का बकला, काबुली हड़, काबुली द्वारा वर्ति प्रस्तुत करें और यथाविधि उपयोग हड़ का बकला, सनाय मक्की, ज़रिश्क में लाएँ। ( साफ किया हुआ ), गुलबनता प्रत्येक
गुण-उदरशूल को लाभप्रद है और कोष्ठ १॥ तो० । निर्माण-विधि-मग्न फलूस
को मृदु करता है। तयार शंबर के सिवा शेष सब श्रौषधों को कूट छानकर १ तो० १०॥ मा० मधुर वाताद तैल में (१२) श्रारग्वध त्वक् क्वाथ-पारग्वध मईन करके चने प्रमाण वटिकाएँ प्रस्तुत करें की छाल, सौंफ, कुसुम्भ बीज प्रत्येक ५ तो०, और वर्क चाँदी में लपेट कर रखे। मात्रा- मजी ३ मा० । सब को जौकुट कर के १। सेस श्रावश्यकतानुसार इसमें से ७ मा० से १ मा० पानी में १॥ पाव जल शेष रहने तक पकाएँ। तक सेवन करें।
फिर शर्बत बरी मिलाकर पिलाएँ। गुण-यह सर्वोत्कृष्ट विरेसन है और मस्तिष्क गुण-रजः रोध एवं कष्ट रज में लाभदायक रोगों में हित है।
(.) मुलरियन मुबारक-गुलाब १ तो अमलतासकल्प amala tāsa-kalpa-हिं०प० गुल नीलोफर १ तो०, गुलबनशा १ तो०, अमलतास को दाह और उदार्वत से पीड़ित रोगी पालबोखारा १ तो० तुरंजबीन २ तो०। को दाख के रस के साथ दें (१)-४ वर्षकी अवस्था निर्माण-विधि-समग्र औषधों को रात्रि भर से लेकर १२ वर्ष तक की उम्र वाले के लिए श्राधसेर अर्क गुलाब में तर करके प्रातः काल इसके गूदे की मात्रा १ प्रसृत से १ अंजली तक इतना पकाएँ जिससे श्राधा शेष रह जाए। है। इसे सुरामण्ड, कोल शीधु,दधिमण्ड, अामले तदनन्तर फलस खयार शंबर १० तो० को उक्त के रस या शीत कपाय बनाकर उसे सौवीरक के तरल में डालकर थोड़ी देर तक मृदु अग्नि देकर साथ दें। (२)-अमलतास की मज्जा (गूदे) उतार ले। इसमें १० तो. हड़ के मुरब्बे का के साथ दूध को सिद्ध करके उससे घी निकालें, शीरा मिलाकर १ तो० रोग़न बादाम सम्मिलित
फिर उस घी को श्रामले के रस और उसके गूदे कर लें। मात्रा-अवस्थानुसार वैद्य की राय के कल्क से सिद्ध कर सेवन करें। (३)-अथवा
उसी घी को दशमूल, कुल्थी. और जौ के कपाय गुण-यह अत्युत्तम कोष्ठमृदुकर है। यह
तथा निसथ आदि के कल्क से सिद्ध करके सेवन अत्यन्त सुस्वाद और प्रत्येक प्रकृति के अनुकूल
करें । (४)-अथवा दन्ती क्वाथ लेकर उसमें
अमलतास की मज्जा (गूदा)१ अंजली और (१०) भारग्वध गराडूष-रुब्ब ख़यार
गुड़ अंजली मिलाकर यथा विधि सन्धान कर शंबर ६ तो०, वृष्टि जल २० तो०, शिब्ब यमानी
४५ दिन तक रक्खा रहने दें, जब अरिष्ट सिद्ध हो ( यमनी फिटकरी)१ मा० सबको विलीन करके
जाए तो उसे सेवन करें। जिस मनुष्य को मधुर गण्डष कराएँ।
कटु या लवण जिस प्रकार का खान पान प्रिय गण-टॉन्सिल के शोथ तथा खुनाक के हो उसे उसी के साथ अमलतास से विरेचन देना लिए रामवाण है।
उचित है। च० सं० च० अ०।
से।
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