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श्रमलतास
वह रक्त प्रमेह उत्पन्न करता है । पुष्प मृदुकर्त्ता, श्याम त्वचा का प्रलेप दद्रुध्न है । बु० मु० ।
कासमी पत्र स्वरस, मको और कसूस तथा अन्य उपयुक्त औषधों के साथ इसका उपयोग करने से यह यद्वेदना व यकृत् के अवरोध, यन ( कामला) और उष्ण ज्वरों को लाभ है। बकरी के दूध वा श्राब अजीर के साथ इसका गण्डूष करनेसे ख़ नाक्रको लाभ होता है ।
दायक
શબ્દ
नोट- चूँकि यह प्रांत्र के भीतर चिपट जाने के कारण क्षोभ व घर्षण उत्पन्न करने का हेतु बनता । श्रत एव इसको रोग़न बादाम के साथ मलकर काम में लाना चाहिए ।
डॉक्टरी मत से
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एलोपैथी चिकित्सा में केवल इसका गूदा अर्थात् श्राध फल मज्जा ही श्रौषधार्थ व्यवहार होती है ।
श्रारग्वध फल मज्जा, श्रारग्वध गूदिका, अमलतास का गूदा - हिं० । केशीई पल्पा Cassite Pulpa - ले० । केशिया पल्प Cassia Pulp. इं० । ऋरले ख़्यार शंबर- प्र० ।
( श्रॉफ़िशल Official . )
निर्माण विधि - यह कोमल, मधुर, लगभग श्यामवर्ण का गूदा है जो अमलतास की फली से प्राप्त होता है । उक्त फली को जल में मल छान कर यहाँ तक पकाएँ कि वह मृदु रसक्रियावत् रह जाए ।
प्रभाव - महुरेचक | मात्रा - मृदुरेचक रूप से ६० से १२० ग्रेन तक और १ से २ उस • तक विरेचक रूप से । यह कन्फेक्शियो सेन्ना में पड़ता है ।
प्रभाव तथा प्रयोग — यद्यपि यह मृदुकर्ता व विरेचक है । परन्तु, क्योंकि इसके प्रयोग से जी मचलाता है और उदर में मरोड़ होने लगती है । इसलिए इसको अकेला उपयोग में नहीं लाते, प्रत्युत सनाय के साथ सम्मिलित कर मअजून की शकल में दिया करते हैं । ( ए० मे० मे० )
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श्रमलतांस
श्रन्यमत
एन्सली ने भारतीय लोगों को इसके गूदे और पुष्प का उपयोग करते हुए पाया ।
डॉक्टर इर्विन लिखते हैं- "मैंने इसकी जड़ को सबल रेचक पाया ।" गुजरात से विरेचक रूप से इसके उपयोग करने की भी सूचना मिलती 11
कोंकण में इसके कोमल पत्तोंका स्वरस दद्रुघ्न रूप से तथा भिलावे के रस के प्रयोग द्वारा हुए ख़राश के शमनार्थं इसका उपयोग करते हैं ।
रफियस कहते हैं कि पुर्तगाल निवासी नव्य फलियों एवं पुष्प का मअजून बनाते हैं । इसके वृक्ष में छेवा देने से एक विशेष प्रकार का निर्यास निर्गत होता हैं जो कतीरा के समान पानी में फूल जाता है । ( डोमक ) कैशिया afafagar (Cassia Braziliana. ) तथा कैशिया मॉस्केटा ( Cassia Moschata.) भी भारतवर्ष में लगाए गए हैं । ये गुण में बिलकुल श्रमलतास के समान होते हैं । अधिक काल तक इसका प्रयोग करने से गम्भीर धूसर वर्ण का मूत्र याने लगता है। कॉफी के एसेंस में मिश्रण करने के लिए इसका गूढ़ा काम में श्राता है । श्रजीर्णं स्वभाव के व्यक्तियों के लिए इसके गूदा की प्रशंसा की जाती है। बीज वामक है। मूल तीव्रविरेचक है। फल मज्जा संग्रह ग्रहणी प्रवण व्यक्तियों के पक्ष में हितकर है। मृदुरेचक रूप से इसकी मात्रा ३० से ८० ग्रेन है । ( मेटिरिया मेडिका ऑफ़ इंडिया - श्रार० एन्० खोरि, भा० २, पृ० २०० )
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मज्जा, मूलत्वक्, बीज और पत्र में रेचक गुण है I मूल रेचक, वल्य और ज्वरध्न प्रभाव करता है । चूँकि अकेला प्रयोग करने पर पूर्ण प्रभाव हेतु इसको एक या दो आउंस श्रथवा इससे भी कहीं अधिक मात्रा में देना पड़ता | इस लिए इसको अन्य रेचक औषधों के साथ ( सहायक रूप से ) पाक वा अवलेह रूप में वर्तते हैं । ( इसको अकेला न वर्तने का यह भी कारण है कि इससे शूलवत् वेदना परिकर्त्तिका और उदराध्मान