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प्रभिक
अभितापः - against, with respect to. | अभिघार abhi-ghaira-हिं० संज्ञा पु.
(१) सामने, उ०-अभ्युत्थान | अभ्यागत । | अभिघारः a.bhi-ghārah-सं० पु. (२) बुरा, उ०-अभियुक्र ।
(१)(Ghee, clarified botter.) (३) इच्छा उ०-अभिलाषा |
घृत, घी । तूप-म० । रा०नि० व० १५ । (२) (४) समीप, उ०-अभिसारिका ।
गी से छौंकना व बघारना । (१) बारंबार, अच्छी तरह, उ०-अभ्यास । (३) सींचना, छिड़कना । (६) दूर, उ०-अभिहरण |
अभिचारः abhi-chairah-सं० पु. (७) ऊपर, उ०-अभ्युदय ।
अभिचार abhi.chāra-हिं. संज्ञा पु० । अभिक abhika-हिं० वि० [सं०] कामुक । (An incantation to destroy.) कामी। विषयी।
हिंसाकर्म, मारणमन्त्र-विशेष । मन्त्र श्रादि द्वारा अभिगमन abhi-gamana-हि. संज्ञा पुं० मारण आदि प्रयोग करना । किसी शत्रु की की [सं०] सहवास, संभोग।
हुई कृत्य आदि का उत्पन्न करना, किसी प्रकार अभिगामी abhi-gami-हिं० वि० [सं०] का अपघात, जादू से मूंठ चलाने का नाम अभि
[स्त्री० अभिगामिनी ] सहवास वा संभोग करने चार है। भा० म० २ आगन्तुक ज्वर लक्षण बाला उ०-ऋतुकालाभिगामी ।
मा०नि० ज्व० । मंत्र प्रादि द्वारा उत्पन्न पीड़ा अभिघातः abhi-ghatah-सं० ० ) र० मा० । यन्त्र मन्त्र आदि अवपीड़न, “अभिअभिघात abhi-ghata-हिं० संज्ञा पु.
भाराभिशापोत्थैः।" रत्ना०।। (१) (Wound or blow ) अभिघात अभिचार abhichāra-सं० पु तंत्र के प्रयोग हिं० पु । श्राघात, चोट पहुँचना, ताड़न, दाँत
जो छः प्रकार के होते हैं-मारण, मोहन, स्तंभन से काटना । प्रहार, मार। शस्त्र, मुक्का, (धैं सा)
विद्वेषण, उच्चाटन और घशीकरण । और लाठी प्रादि की चोट का नाम अभिघात है।
अभिचारक abhcharaka-हिं० संज्ञा पु. भा०म० २ अागन्तुक ज्वर लक्षण | "अभिघाता
[सं०] अंत्र मंत्र द्वारा मारण, उच्च.चन अादि भिषङ्गाभ्याम ।" (२) पुरुष की बाई पोर
कर्म वि० यंत्र मंत्र द्वारा मारण उच्चाटन आदि और स्त्री की दाहिनी ओर का मसा।
करने वाला | fagia sat: abbi-gháta-jvarah-eio ÇO ( Acquired or Accidental
अभिचार ज्वरः abhi.chāra jvarah-सं०
पु० (Fever producedy incanta fever.) प्राधात जन्य अागन्तुक ज्वर अर्थात्
____tions) विपरीत मंत्रके जपने से, लोहे के श्रुवा तलवार, छुरा, मुक्का, लाठी श्री शस्त्र श्रादि के
से मारणार्थ सर्पपादिक होम वा कृत्य के प्रयोग लगने से उत्पन्न ज्वर | "अभिघाताभिचाराभ्यां
करने से जो ज्वर प्रकट होता है. उसे "अभिचार अागन्तुर्जायते ।" मा० नि० ( श्राग० )
ज्वर" कहते हैं। ज्वर ।
श्राघात से प्रकुपित हुई वायु रक्त को दूषित | अभिचारी abhi-chari-हिं० वि० [सं० अभिकर व्यथा, शोफ वैवर्ण्य और वेदना सहित ज्वर
चारिन ] [स्त्री० अभिचारिणी ] यंत्र मंत्र आदि को करती है। च०।
का प्रमोग करने वाला । उन ज्वरों में दोष ज्वर के उत्पादक नहीं होते, लक्षण-इससे तथा अभिश्राप से उत्पन्न ज्वर अपितु वे पश्चात् को उनके परिणाम स्वरूप होते में मोह और प्यास होती है । मा० नि0 ज्व०। हैं । सारांश यह कि सर्व प्रथम श्राघात के कारण | अभितापः abhi-tāpah-सं० पु. (१) सज्वर उत्पन्न हो जाता है। फिर उस से दोपों का taip a19 ( General heat ) i(?) प्रकोप होता है।
अश्वज्वर ( Horse fever)। गज० वै० ।
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