________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रबाती
४२६ .
अबाबील .
रूप से उसको स्वादिष्ट एवं सुगन्धयुक्त करने के लिए डाले जाते हैं।
उदाहरणतः-जीरा, कालीमिर्च, लौंग,दालदीनी, और धनियाँ प्रभृति । स्पाइसेज़ (Spices), सीज़ानिङ्गज़ (Seasonings)
अबाता abāti-हिं० वि० [सं० अ-नहीं+बात - वायु] (1) बिना वायु का । (२) जिसे वायु
न हिलाती हो । भवानस abānasa-यु० श्रावनूस । See
ábanús. अबाबील ababila-हिं० संज्ञा स्त्री० [अ०]
स्वालो ( Swallow ) ई० । काले रंग की एक चिड़िया । इसकी छाती का रंग कुछ खुलता होता है। पैर इसके बहुत छोटे छोटे होते हैं जिस कारण यह बैठ नहीं सकती और दिन भर श्राकाश में बहुत ऊपर मुड के साथ उड़ती रहती है। यह पृथ्वी के सब देशों में होती है। इनके घेसिले पुरानी दीवारों पर मिलते हैं। पर्याय-कृष्णा | कन्हैया । देव दिलाई। सयानी, सियाली, पित्त देवरी-हिं० । कन अबाबील, खुत्ताफ़ (खुतातीफ़-बहु०), अस्त -: रुज्जनह,, जनीब-अ० । परसत्वक, फरसंग्रह, बाबुवानह -फा० । शालीतून, खालीदूस-यु० । करला नफ़ ख तु० । खजला-वेल्मो०।
प्रकृति-इसका मांस तीसरी कक्षा के अब्बल | मर्तबा में उष्ण व रूक्ष है । भस्म शीतल व रूक्ष होती है। विट् अत्यन्त उष्ण व रूक्ष होता है। रंग-स्वयं श्यामाभायुक्त धूसर और इसका मांस श्यामाभायुक्त होता है। स्वाद-अन्य पक्षियों के मांस के समान किंतु कुछ नमकीन । हानिकर्ता--गर्भवती तथा उष्ण अर्थात् पित्त प्रकृति को । दर्पघ्न-घृत व दुग्ध एवं सर्दतर वस्तुए । प्रतिनिधि--ग्रन्थों में इसकी प्रतिनिधि का वणन नहीं । किंतु, चक्षु रोगों में जतूका का मरज़ । मुख्य कार्य-चक्षु रोगों के लिए अत्यन्त लाभदायक है और रकाल्पतानाशक है।
गुण, कर्म, प्रयोग-इसके मांस का कबाब
अवरोधोद्धाटक और रक्ताल्पता एवं प्रीहा संबन्धी रोगों और वस्त्यश्मरी के लिए लाभदायक है। एक मिस काल (१॥ मा० ) को मात्रा में इसके शुष्क पिसे हुए चूर्ण को फाँकना दृष्टिशक्रिवर्द्धक है। और दो दिरम नमक सूए खुनाक के लिए लाभदायक है। इसकी भस्म का गंडुप वा शहद के साथ प्रलेप करना उपजिह्वा ( कौवा ) और कंगत सम्पूर्ण व्याधियों को नष्ट करता हैं। इसके बच्चे की भस्म को रुधिर में मिलाकर अथवा इसका मस्तिष्क मधु में . मिलाकर नेत्र में लगाना चक्षुष्य है और मोतियाविन्दु की प्रारम्भिक अवस्था में लाभप्रद है । नाव ना, फूली और सबल के लिए लाभदायक है। इसका ताज़ा रक अत्यन्त कांतिदायक एवं त्वचागत चिह्रींका नाश करने वाला है। गो पित्त के साथ बालों को सफ़ेद करता है । इसके झांझ को जलाकर उसमें से एक मिसकाल (४॥ मा०) की मात्रा में पिलाने से बन्ध्यत्व का नाश होता है और इसके पित्त का नस्य बालों को काला बनाता है; परंतु मुंह में दुग्ध रक्खें जिससे कि दाँत काले न हों। इसके नेत्र को चमेली के तेल में रगड़ कर पेडू पर लगाना बन्ध्यत्व के लिए परीक्षित है । म० अ० । ___इसके शिर को जलाकर भस्म प्रस्तुत कर मद्य में डाल दें। इससे नशा न होगी। इसकी विष्ठा को श्वेत बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं । यदि किसी के बाल असमय श्वेत हो गए हों तो इसके पित्त का नस्य देने से वे काले हो जाते
अबाबीलों में मिश्री अबाबील उत्तम होता है। इनके अंडे वल्य तथा कामोद्दीपक होते हैं। घोंसलों से कने अबाबील प्राप्त होता है । इसको खानहे अबाबील और अवाबील मिश्री, मूए अबाबील और अबाबील की मस्ती कहते हैं । इसकी प्रकृति उपण त रूक्ष है । यह अत्यंत कामोद्दीपक, शुक्रमेहघ्न, हृद्य और नाडियों को बल प्रदान करने वाला है । यह मुझे के खुले हुए चोंच के समान होता है । कोई सफ़ेद रंग का और कोई
For Private and Personal Use Only