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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकृतीमून ( Cuscutine ) | ( फा० ई० २ भा पृ० ४५७), ४१७ इतिहास --- दोसकुरीदूस ( Dioscorides ) ने इस नाम के जिस पौधे का वर्णन किया है वह स्पष्ट है। लाइनी का वर्णन उससे बहुत कुछ स्पष्ट है । भारतवर्ष में जो श्रोषधि अत्फ़ोमून नाम से बिकती है उसका श्रायात यहाँ फ़ारस से होता है । यह सम्भवतः कस्क्यूटा यूरोपिया ( Cuscuta Europea, Linn. ) की ही एक बड़ी जाति मालूम होती है, जिसकी जन्मभूमि युरोप, पश्चिम तथा मध्य एशिया है । प्रकृति — तीसरी कक्षा में उष्ण और प्रथम में रुक्ष है। हानिकर्त्ता - उष्ण व पित्त प्रकृति वालों को एवं युवा पुरुषों को । यह मूर्च्छा और श्रस्यंत तृषाजनक है। दर्पन - रू ( धन सत्व ) सेव व अनार या शर्बत संदल और केशर । कतीरा एवं रोगन बादाम में मलने से इसके श्रव गुण दूर हो जाते हैं। इसके अतिरिक्र यह रूक्षता उत्पन्न करता है | उक्त विकार के शमनार्थ इसको किसी आर्द्रताजनक द्रव्य जैसे गुलबनफ़शहू या गावजवान के साथ मिलाकर देना चाहिए। कोई कोई कहते हैं कि फुफ्फुस के लिए भी अहितकर है। उसके दूर करने के लिए इसको समग़ अरबी (बबूर निर्यास) वा कतीरा के साथ प्रयोग करना चाहिए । प्रतिनिधि - लाजवर्द, निशोथ पित्तपापड़ा, उस्तोख़हूस और बिस्फ्राइज । मात्रा - ६मा० से १ वा १॥ तो० तक । क्वाथ में साधारणतः यह ६ मा० से १ तो० तक व्यवहार में श्राता है और इसको पोटली में बाँधकर डाला जाता है। एक या दो जोश देकर पोटली को निकाल लेना चाहिए | गुण, कर्म, प्रयोग - अप्रतीमून अपनी उष्णता व रूक्षता के कारण श्राध्मान को दूर करता है । श्रधेड़ और वृद्ध मनुष्यों के अनुकूल है । क्योंकि उनकी प्रकृति को साम्यावस्था पर लाता है । सौदावी ( वातज ) व्याधियों को दूर करता और सौदा ( वात ) एवं १३ अतीमून बलगम ( श्लेष्मा ) के दस्त लाता है । अतएव मृगी ओर मालीख़ौलिया के लिए उपयोगी है तथा अपनी उष्णता व रूक्षता के कारण युवाओं और उष्ण प्रकृति वालों में तृषा उत्पन्न करता है । यह उनमें मुखशोष उत्पन्न करता है । इसलिए इसके साथ मुलहठी, बन शहू और मधुरवारवाद तैल के समान तरी पहुँचानेवाली वस्तुएँ मिलानी चाहिएँ। ( त० न० ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह शोथलयकर्त्ता, रोधोद्घाटक, प्रायः मास्तिष्क रोगोंको लाभप्रद, रक्रशोधक और प्रायः स्वग रोगों को लाभप्रद है। प्लीहा वृद्धि में इसका प्रलेप लाभदायक है । इसको साधारणतः माउज्जुब्न के साथ या दूध में कथित कर उस दूधका प्रयोग कराया जाता है । इसे वायु निःसारक भी बतलाया जाता है तथा श्रङ्गमर्द्दप्रशमन रूप से इसका स्थानिक उपयोग होता है । मख़्ज़नुल् अद्वियह् में इसके गुण तथा उपयोग का सविस्तार वर्णन आया है । उसका सारांश ऊपर दे दिया गया है । विस्तार भय से उन सब को यहाँ स्थान नहीं दिया गया । चिकित्साप्रणाली में विभिन्न प्रकार के प्रतीमून में से सम्प्रति किसी का प्रयोग नहीं होता । नव्य कुशूस. अकशूस. कुशुसा कुस ( तीमून बीज ) For Private and Personal Use Only -अ० कसूस, अमरलता के बीज - हिं५, उ० । ब. ज़ुल्कुश.. तुमे कसूस, तु मे वर्श- फा० । अरबी कुशूस. से ही मध्यकालीन लेखकों का लेटिन पद कस्क्युटा ( Cuscuta ) व्युत्पन्न है । नोट - यह अकाशवेल का पर्यायवाची शब्द है; परन्तु भारतीय बाज़ारों में कसूर्स श्रनतीमून ( फ़ारसी) के बीज के लिए प्रयोग में श्राता है । वर्णन - इसके बीज में उस पौधे के चुद्र एवं श्रायताकार पत्र तथा कण्टक मिले होते हैं जिस पर कि अफ़्तीमून उत्पन्न हुआ होता है और उस पौधे के कांड के कुछ भाग एवं पुष्प भी मिले.
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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