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अपामार्ग
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अपामार्ग
मलावरोधक, रूत, वान्तिकारक और रक्तपित्त को दूर करने वाला है । अपामार्ग जल तिक, शोथ और कफनाशक है तथा कास, वात और शोष ( सूखा ) का नाश करता । वै० निघ० ।
अपामार्ग के वैद्यकीय उपयोग
चरक-शिरोविरेचक वस्तुओं में अपामार्ग तण्डुल (चिचड़ी का बीज ) है। (सू० २५ १०)।
सुश्रुत-(१) अर्श में अपामार्ग मूल (चिचही की जड़ ) को चावल के धोवन में पीसकर मधु के साथ प्रति दिन सेवन करें। (चि०६०)। टीकाकार डवण-लिखते *"अपामार्ग मल योगः पित्त रक्तार्शसि । गयदास कफानबंध रक्जेषु ।” अर्थात् पित्तज रक्कार्श वा कफानुबंध रकाशं रोगी को इस औषध का सेवन करना चाहिए। (२) कृमि रोग में स्नेह वस्ति लेने के बाद शिरीष और अपामार्ग का रस मधु के साथ सेवन करें । ( उ० ५४ प्र०) । __ चक्रदत्त-(१) सद्योग्रण द्वारा रकस्राव होने की दशा में, अर्थात् शरीर के किसी भाग के कट जाने के कारण जब वहाँ रुधिर स्राव होने लगे तब अपामार्ग के पत्र का रस प्रचुर परिमाण में लेकर क्षत के मुख को सेचन करने से रकस्रुति बन्द हो जाती है। (व्रण शोथ चि०)। (२) कर्णनाद तथा बधिरता में अपामार्ग क्षार - अपामार्ग के अन्त मदग्ध क्षार के जल तथा कल्क में तिल के तेल को डालकर यथा विधि तेल प्रस्तुत करें। इस तेल को कान में भरने ( कर्णपूरण ) से कर्णनाद तथा बधिरता रोग नष्ट होते हैं । (कर्ण रोग चि०) । (३) नूतन लोचनोत्कोप अर्थात् अभिष्यंद वा आँख पाने में अपामार्ग मूल ताँबा के बरतन में किंचित् लवण मिश्रित दही के तोड़ को अपामार्ग की जड़ से घिसकर उस जल को आँख में भरने से अमिप्यंद रोग को लाभ होता है। (नेत्र रोग चि०)।
भावप्रकाश-विसूचिका में अपामार्गमूल--
अपामार्ग की जड़ को जल के साथ पीस कर पान करने से विसूचिका रोग दूर होता है। (म० ख०२ भा०)।
शाङ्गधर-रक्तार्श में अपामार्ग के बीज को चावल के धोवन के साथ पीसकर पीने से रक्रार्श (खूनी बवासीर ) नष्ट होता है, इसमें कोई संशय नहीं । (द्वि० ख० ५ म० अ०)।
वङ्गसेन-(१) उन्माद रोग में अपामार्ग श्वेत पुष्प की बरियारा की जड़ की छाल १ तो०, अपामार्ग की जड़ २ तो० । इनको एकत्र कूटकर १॥ जल एवं ॥ गोदुग्ध के साथ क्वाथ प्रस्तुत करें। शीतल होने पर इसे प्रातःकाल सेवन करें। इससे घोर उन्माद रोग की तत्काल शांति होती है । (उन्माद चि.)।
(२) श्रागन्तुक व्रण रोपणार्थ अपामार्ग मूल-बरियारा एवं अपामार्ग की जड़ के कल्क द्वारा तैल पाक करें। इसे नूल तैल कहते हैं। यह अागन्तु व्रण का रोपण करने वाला है।
(आगन्तुषणाधिकार )। हारीत-(.)निद्रानाश रोगमें अपामार्ग और काकजना द्वारा प्रस्तुत क्वाथ के सेवन से शीघ्र नींद आ जाती है। (चि० १६ अ०)। (२) शोथ रोग में अपामार्ग तथा कोकिलाच के क्वाथ द्वारा वाष्प स्वेद वा वहाँ पर पिंड स्वेद करना शोथ रोगी के लिए हितकर है। (चि० ३६ अ०)।
वक्तव्य चरक में सूत्रस्थान के चतुर्थ अध्याय के क्रिमिघ्न तथा वमनोपगवर्ग में अपामार्ग का पाठ दिया है । चरकोक अर्श चिकित्सा में अपामार्ग का नामोल्लेख नहीं है। शोथ चिकित्सा के "मयूरकं मागधिकां समूलां" पाठमें मयूरक नाम से अपामार्ग का प्रयोग आया है। सुश्रुतोक्त शोथ चिकित्सा में अपामार्ग का उल्लेख नहीं है। चक्रदत्त के लिङ्गार्श चिकित्सा में तथा भल्लातकलौह में अपामार्ग का व्यवहार हुआ है; परन्तु शोथमें इसका उल्लेख नहीं है। चरक के विमान स्थान के आठवें अध्यायमें वर्णित वान्तिकर इम्बों
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