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अपादान
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अपामर्ग
प्रवादान apādāna-हिं. संज्ञा पुं० [सं०] (२) गुदास्थ वायु । पाद । पईन । गोज़ ।
(१) हटाना। अलगाव । विभाग । (२) ग्रहण । | अपां धातुः apāndhātuh-सं० पु. रस, जल,
( The taking from a thing). । मूत्र, स्वेद, मेद, कफ, पिरा और रक इत्यादि । अपानः apanah-सं० पु. (१)-क्ली० गुदा, भा० म० १ भा० अतिसा० चि० । “संशम्यामलद्वार, चूति । एनस । (Anus)-इं०। रा०
पांधातुरग्निः प्रवृद्धः ।" नि०व०१८ । वा० सू० ११ १० । (२) अपान अपांपित्तम् apanpittam सं. क्ली. चित्रक देशीय पवन, गुदा में रहने वाली अपान वायु । वृत्त, चीता। (PlumbagoZeylanica). अम०। (३) अपान, अर्थात् मन्या पृष्ठ, पृष्टांत अम०। तथा पाणिं ( एणी) में जाने वाली धायु । हे०
अपानोन्नमनो apanonmamani-सं० स्त्री० च० ४। (४) दस वा पाँच प्राणों में से
(Levator ani). गुदोत्थापिका । एक एक। इन्हीं तीन वायुओं में से कोई किसी
पेशी विशेष । को और कोई किसी को अपान कहते हैं--(क)
अपा-पित्तम् apa-pittam-संक्लो० चीता वृत्त, वायु जो नासिका द्वारा बाहर से भीतर की ओर
चित्रक | ( Plumbago Zeylanica). खींची जाती है। (ख) गुदास्थ वायु जो मल मूत्र को बाहर निकालती है। (ग) वह वायु
अपामार्गः a pāmārgah-सं० पु० जो तालु से पीठ तक और गुदा से उपस्थ तक
अपामार्ग apāmārga-हि. संज्ञा प० व्याप्त है। (५) वायु जो गुदा से निकले।
चिचड़ा(-रा ), चिर्चिरा, लटजीरा, चिचड़ी, देखो-वात(वायु)।
ऊँगा, ऊँगी, अमाझारा-हिं० । अकिरैन्थीस,
GETTI ( Achyranthes Aspera, नम् apanam-सं० क्ली० ( Anal
Linn, ), अकिरैन्थीस इंडिका AchyranDrifice) गुदा, मलद्वार, चूति ।
thes Indica.. Roxb., बाइडेण्टेटा Bideअपान त्वक् संकोचनी apāna-tvak-sanko
nta ta, अकीरैन्थीस अॉन्ट्युज़िफ़ोलिया ___chani-सं० स्त्री० ( Corrugator Achyranthes Obtusifolia, Lamb, cutis ani ) मलद्वार सोचनी।
अकीरैन्थीय स्पिकेटा Achyranthes अपाकेष्टाः apākes htāh-सं० पु० अकेला । Spicata Burm.-ले० । रफ चैफ़ ट्री अथर्व० । सू०६। १४ । का० ८ ।
Rough Chaff tree, प्रिक्ली चैफ़ फ्लावर अपान-देशः apāna-deshah-सं०पु० गुददेश। Prickly chaff Flower-इं० । अथर्व. (Anal region ). व० निघ०।
सू० १७ । ८ | का० ४। सु० सू० ३६ अ. मपान नाली apana-nāli-सं०स्त्रो० (Anal शिरी चि.। canal ) गुदा।
संस्कृत पर्याय--शैखरिकः, धामार्गवः, अपान वायु apana-vayu-हिं० संज्ञा पु. मयूरकः, प्रत्यकपर्णी, कीशपर्णी, किनिही, खर[सं०] (१) पांच प्रकार की वायु में एक । मुजरी (अ) अपाङ्गकः, किनिः, कीशपर्णः, चमत्
अपान वायु के कर्म - रुक्ष और भारी अन्न कारः, (शब्दर०), शैखरेयः, अधामार्गवः, के खाने से मल मूत्रादि के वेग रोकने से, सवारी केशपर्णी (अ० टो०), स्थलमजरी, प्रत्यपुष्पी पर अधिक बैठने से, अधिक चलने से, अगम्य क्षारमध्यः, अधोघंटा, शिखरी (र), दुर्ग्रहा स्थानों में जाने से, अपानवायु कुपित होकर मूत्र
(भा० ), दुर्ग्रहः, अध्वशल्यः, कान्तीरकः, दोष, शुक्र दोष, अर्श और गुदभ्रश तथा अन्य मर्कटी, दुरभिग्रहः, वासिरः, पराक्पुष्पी, कण्टी, कष्टसाध्य पक्वाशयगत रोगों को उत्पन्न करता कर्कटपिप्पली, कटु मञ्जरिका, अघाटः, तरकः, है। धा नि० अ० १६ ।
पाण्डूकण्टकः, नाला कण्टकः, कुब्जः, मालाकण्टः,
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