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"अपस्मार
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अपस्मार
इसकी मात्रा कम न की जाए तो ब्रोमिम
(ब्रोमाइड द्वारा विषाकता) के अप्रिय लक्षण · उत्पन्न हो जाते हैं। (इसके लिए देखोब्रोमाइड)।
ब्रोमाइड्स को उपयोग सम्बन्धी कतिपय आवश्यकीय सूचनाएँ
(१) विस्मृति वा बुद्धिभ्रश प्रभृति वस्तुतः स्वयं अपस्मार के सामूहिक वा सम्मिलित लक्षण होते हैं । अतः उनको ब्रोमाइड्स द्वारा विषाक्तता के लक्षण मानना भूल है।
(२) ब्रोमिज़्म ( ब्रोमाइड्स द्वारा विषाक्ता) के विषैले प्रभावसे बचने के लिए उनके साथ संखिया वा बेलाडोना वा स्ट्रिकनीन (कारस्करीन ) इत्यादि को सम्मिलितकर उपयोग में लाना लाभदायक है।
(३) जब तक ब्रोमाइड्स का पूरा पूरा प्रभाव न हो जाए अर्थात् औषध के विषैले प्रभाव प्रारम्भ • न हो जाएँ, तब तक उसके उपयोग को स्थगित कर देना महान भूल है।
(४) मुखमण्डता वा पृष्ठ पर केवल मुंहासों अर्थात् रक्तवर्ण के दानों का निकल पाना इस बात का प्रमाण नहीं हो सकता कि शरीर में
औषध का पूर्ण प्रभाव हो चुका है अथवा उसका विषैला प्रभाव प्रकट हो गया है। क्योंकि किसी किसी व्यक्रि में ब्रोमाइड्स को थोड़ी मात्रा में देने से भी मुंहासे निकल पाते हैं। अतएव प्राकथित अन्य लक्षणोंका ध्यान रखना भी प्रावश्यकीय है। ' (२) ब्रोमाइड्स के सेवन काल में यदि रोगी को लवण रहित श्राहार दिया जाए तो औषधका प्रभाव शीघ्र तर एवं श्रेष्ठतर होता है । क्योंकि प्राहार में लवण के न रहने से यह
औषध शारीर एवं वाततन्तुओं में भली प्रकार 'अभिशोर्षित होती हैं। ऐसी दशा में इसकी थोड़ी मात्रा भी पूर्ण लाभ प्रदर्शित करती है। प्रस्तु, कतिपय डॉक्टरों के अनुभव इस बात के समर्थक हैं कि ऐसी अवस्था में प्रोमाइड्स को या केवल सोडियम् प्रोमाइड को ३० ग्रेन की मात्रा में |
प्रति दिन सेवन कराने से दिनके भीतर भीतर रोग के वेग रुक गए।
(६) ब्रोमाइड्स का प्रयोग कितने काल तक जारी रखना चाहिए ? रोग के वेग के रुक जाने के बाद तीन वर्ष तक ब्रोमाइड्स के प्रयोग को जारी रखना चाहिए । परन्तु तीसरे वर्ष में धीरे धीरे उसकी मात्रा घटा देनी चाहिए। अस्तु, एक वर्ष तक तो औषध को अविच्छिन्न प्रयोग में लाना चाहिए और फिर सप्ताह में एक दो दिन नागा करा देना चाहिए। डेढ़ वर्ष पश्चात् प्रति दूसरे दिन औषध देनी चाहिए और दो वर्ष पश्चात् सप्ताह में दो बार औषध देना पर्याप्त है।
(७) जब पैतृक ट्युबर कलोसिस (क्षय ) के कारण या अभिघात जन्य वा गिर जाने से मस्तिष्क को भाघात पहुँचने के कारण मृगी होती है अथवा बालकों को दन्तोद् जन्य तथा युवानों में उपदंश जन्य मृगी होती है तब उक्त अवस्था में रोग के मूल कारण को तदोक उपचार द्वारा दूर करना चाहिए । उन रोगों के उचित उपचार द्वारा अपस्मार को भी लाभ हो जाता है । अस्तु, उपदंश जन्य मृगी में पुटासियम् आयोडाइड से लाभ होता है और इसी प्रकार औरों को भी। अतएव जब तक असल रोग का उचित उपाय न किया जाए तब तक ब्रोमाइड्स के उपयोग द्वारा कुछ भी लाभ नहीं होता। इसी प्रकार स्त्रियों में जब ऋतु दोष बा मानसिक विकार के कारण यह रोग हो अथवा पुरुषों में जब हस्तमैथुन इसका कारण हो तो जब तक रोग के मूलभूत कारण सर्वथा दूर न हो लें तब तक केवल ब्रोमाइडस के उपयोग से इस रोग को बिलकुल आराम नहीं होता। .. (= ) प्रोमाइड्स से अभिप्राय है-(%) प्रोमाइड ऑफ़ पुटासियम्, (ख) ब्रोमाइड ऑफ
सोडियम्, (ग) ब्रोमाइड प्रॉफ अमोनियम्, ' (घ) प्रोमाइड ऑफ स्ट्रॉशियम् और (2)
ब्रोमाइड ऑफ़ लीथियम् प्रभृति । कोई डॉक्टर तो इनमें किसी एक को अकेले ही देना अधिक उत्तम
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