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अन्धाहिः
अन्धुक
के देत कर मथें । उसमें से निकाले हुए मक्खन को मुर्गे को खिलाकर पुष्ट करें। उसका बीट ले अञ्जन करने से अन्धता दूर होती है । वं० से.
सं० नेत्र रो०चि०।। अन्धाहिः andhahih-सं०० कुचिया मीन ।
कूँचेमाछ, जल मेटे-बं० । त्रिका०। अन्धाहुलो andhāhuli-सं० स्त्रो० अाहुल्य
नामक शिम्बी-फल वनस्पति विशेष । भुज्जित खड़-हिं० । तरवड़-काश०, मह । See-a
hulyam. अन्धाहिक and hāhika-अन्धा साँप । एक प्र
प्रकार का साँप । कौटि० अर्थ। अन्धिका and hikā-सं० स्त्रो० (१) सर्षपी, स
फेद सरसों । (२) स्त्री विशेष । (A woman) मे० कत्रिकं । (३) नेत्र रोग विशेष ( An
eye-disease. ). अन्धियार,-रा andhiyara,-ra-हिं. पु.
अंधेरा । ( Dark, darkness). अन्धुक andhuka-हिं० पु. जंगली अंगूर-दः ।
श्रामोलुका-बं० । इण्डियन वाइल्ड वाइन Indian wild vine )-ई० । वाइटिस इण्डिका (Vitis Indica, Linn.)-ले०। विग्नी डी' इण्डी ( Vigne d' Inde) -फ्रां० । युवाँस डास ब्युगिॉस ( Uvas dos bugios )-पुर्तगा० । शेम्बर-वल्लि --ते. । चेम्पार- वल्लि -मल० । राण-द्राक्ष, कोले जान-मह० । साव-सम्बर-को० ।
द्राक्षावर्ग (N. 0. Ampelideæ ) उत्पत्तिस्थान-पश्चिम प्रायदीप, मध्य भोरतवर्षीय पठार,बङ्गाल,मालाबार तथा ट्रावनकोर ।
वानस्पतिक-विवरण-यह एक वृहत् श्रारोही पौधा है जिसमें चिरायु (बहुवर्षीय ) कंदमूल होता है । उक्त पौधे के पत्र पुष्प तथा समग्र भाकृति द्राक्षा का स्मरण दिलाती है । इसका मूल कन्द के वृहद् गुच्छों का समूह है जो माध्यमिक मूल-तन्तुसे लगा रहता है। कंद एक से दो फीट लम्बे, शक्काकार ( दोनो सिरों पर ), ताजे |
होने पर अधिकाधिक व्यास (चौड़ाई ) २-३ इंच; बाहरसे वे धूसर वर्णीय ऊर्ध्वचर्म से श्रापछादित होते हैं जिन पर वृत्ताकार घेरों में स्थित सूचम मस्सावत् उभार होते हैं। भीतर से वे रक वर्णीय एवं सरस होते हैं । परत (पन्ना) काटने पर एक स्थूल घेरा युक्र त्वक् भाग सरलतापूर्वक पृथक किए जाने योग्य और माध्यमिक मजामय भाग चुकन्दरबत् दीख पड़ता है।
सूक्ष्मदर्शक से जड़ की परीक्षा करने पर वह पतली दीवार के पैरेन्काइमा ( Parenchyma ) से बने दीख पड़ते हैं जिनके कोषों में बृहदायताकार श्वेतसारीय कण तथा सूच्याकार रवों के असंख्य गढे ( Bundles ) होते हैं । मूल तथा मूल त्वक् के बाहरी भाग में असंख्य बड़े बड़े कोष्ठ होते हैं। __ स्वाद-कुछ कुछ मधुर, लुभाबी तथा कपैला। कंद चूर्ण तथा पांशु ( Potash) लवणे से पूर्ण होते हैं । ताजी अवस्था में प्रॉग्ज़लेट अॉफ लाइम की सूचियों द्वारा उत्पन्न यांत्रिक क्षोभ के कारण वे चरपरे होते हैं।
इतिहास तथा उपयोग-रहीडी के मत से इसकी जड़का रस नारियलके मजाके साथ रोधो
द्घाटक ( Depurative ) तथा शर्करा के साथ रेचक रूप से व्यवहार किया जाता है। कों. कण के दिहाती लोग इसके क्वाथ को 1 से । पाउंस की मात्रा में परिवर्तक रूप से भी प्रयोग
__ उनका विचार है कि यह रक शुद्धिकर्ता, मूग्रल प्रभावकर्चा और सावों (की क्रिया ) को स्वस्थता प्रदान करता है।
गोवील (बं०) Vitis latifolia का कंद भी उसी हेतु उपयोग में आता है। (फा० ई. १ भा०। ई० मे० मे०) इसके मूलस्वरसको तैलके साथ मिलाकर चक्षु रोगोंके लिए एक उत्तम प्रलेप प्रस्तुत करते हैं । और नारिकेल दुग्ध के साथ मिलाकर इसको कारबंकल तथा अन्य प्रकार के दुष्ट व्रणों पर लगाते हैं। ई० मे. मे० । यह परिवर्तक तथा मूत्रल है । ई० डू० इ०।
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