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अन्तमूल
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अन्तमूल
ca, Wild., Roxb.-ले० । इंडियन इपीके- अधिक होती हैं। ये अस्पष्ट वर्ण की अथवा धूसर क्वाइना Indian Ipecacuanha-कंट्री | श्वेत वर्ण की होती है। जड़ें प्रायः अशाखी होती इपिकेक्वाइना प्लांट Country Ipecacu- हैं। पर साधारणतः उनसे बहुत पतले लोमवत् anha plant-इं०। संस्कृत पर्याय-मलाण्डः, तन्तु या क्षुद्र मूल लगे रहते हैं। अण्डमलः, पूति, अम्भपण :, रोमशः ( भा०); ___ इससे २ से ३ अाकाशी धड़ ( कांड ) निकअन्तर्पाचक, मलान्तः, अन्तमलः, अण्डपणः, लते हैं। कांड, अनेक, दाएँ बाएँ लिपटे हुए लोमशः । पित्-काडी-द० । इक्ज़ज़हब हिन्दी . साधारणतः कुक्कुट-पराकार, कभी कभी हंस के पर -अ० अन्तोमुल-बं० । पितमारी,खड़की रास्ना, के समान मोटे शाखायुक्त किञ्चित् लोमश होते हैं। अन्थमुल, पितकाड़ी-बम्ब० । पितकाड़ी, खड़की पत्र सम्मुखवर्ती, पत्र-प्रांत समान अर्थात् प्रखंड रास्ना--मह० । मेण्डी -उड़ि | नच्--चुरुप्पान, (जड़ के समीप प्रायः व्यत्यस्त) २ से ३॥ वा १९० नञ्ज-मुरिश्चान, नाय--पालै, पैय्प-पालै--ता० । दीर्घ और १॥ से २॥ इं० चौड़ा, पायताण्डाकार, वेरिपाल, कुक्कपाल-ते० । वल लि-पाल-मल। डंठल(पत्रवृत)के पास कभी कभी तथा कुछ हृदयाबिन्नुग-सिं० । अदु-मुत्तद-कना० ।
कार,किञ्चिन् नोकीला, ऊपरका भाग(उदर)चिकना शारिवा वा मूलिनो वर्ग
और नीचेका भाग(पृr)किञ्चित् लोमरा और डंठन (N. 0. Asclepiadex.)
युक्त होता है। पत्रवृत (डंठल) लवु, प्राधा से उत्पत्ति स्थान-उत्तरी तथा पूर्वी बंगाल,
१ इं० लम्बा, लोमरा किञ्चिन् नलिकाकार होता आसाम से वर्मा पर्यंत, दकन (वा दक्षिण भारत- है। पत्र शुष्कावस्था में अधिक पीले सख़्त और वर्ष ) और लंका।
पीतामहरित वर्ण के होते हैं। उनमें पर्याय-निर्णायक नोट अन्तोमुल ( अन्त
किसी प्रकार की अप्रिय गंध नहीं होती। स्वाद मल, अन्तमूल-हिं० )तथा अनन्तोमूल (अनन्त- बहुत कम होता है । पुष्प सूक्ष्म, तारा के सहरा मूल-हिं०) इन दो बंगला भाषा के शब्दों के
प्रातः सायं तथा रात्रि में विकसित होते, परन्तु उच्चारण में बहुत कुछ समानता होने के कारण
दिन में जब सूर्य का प्रखर उत्तार होता है तब वे ये भ्रमवश एक दूसरे के लिए प्रयोग किए जाते कुम्हला जाते हैं । ये वृन्तयुक्र, छत्रकाकार और हैं । परन्तु, इनमें से प्रथम अर्थात् अन्तोमुल पुष्पावल्यावरण युक होते हैं। पुष्पवृंत कक्षीय जंगली पिक्वन Country Ipecacua
साधारण, सामान्यतः विषमवर्ती, पत्रव्रत की nha( Tylopuora Asthamatica)
अपेक्षा दीर्वतर होते हैं ! छत्रक ( Umbel) और दूसरा शारिवा वा अनन्तमूल Countiy
साधारणतः मित्रित, विषम, श्राधार पर पुष्पाSarsaparilla ( Hemidesmus
वल्यावरण ( Involucles ) द्वारा घिरे होते Indicus, R. kr. ) के लिए प्रयोग किया हैं । पुष्पावल्यावरण ( Involucres ) जाना चाहिए।
अत्यन्त लघु और स्थायो होता है । पुष्पवाह्या
वरण वीजकोषाधः, स्थायी,बहुसपलीय (Polyवानस्पतिक वर्णन-यह शारिवा को जाति
sepalous) होता है । सपल (Sepals) का एक बहुवर्षीय लता है । मूल एक लघु काष्ठमय ग्रंथि है जिससे बहुसंख्यक सूत्रमय
५, लघु, . से है इंच लम्बे, हरित वा पीतजड़ें निकल कर नीचेकी ओर जाती हैं । यह २ से हरित होते हैं। पुष्पाभ्यंतर-कोष, बीजकोषाधः ५ वा ६ इंच या अधिक लम्बी और या एवं बहुदलीय होता है । दल ५, त्रिकोणाकार, इं० व्यासमें और अत्यन्त कर्कश अर्थात् टूटनेवाली | १ से इंच लम्बे, कभी कभी एवं किचित् (भंगुर) होती हैं । सौनिक जड़ाकी संख्या विभिन्न पीछे को झुके हुए; पीले (सिवाय अाधार के होतीहै । ये५ से १५ या २० और कभी इससे भो सामीप्य भीतरी भाग के जहाँ वे गुलाबी रंग के
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