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अनुपान
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अनुबन्धः दशाओं में शहद को अनुपान रूप से प्रयोग पश्चात् अधिक बोलना, मार्ग चलना, नींद लेना
धूप में जाना, अग्नि तापना, सवारी पर चढ़ना उपयुक्र अनुपानों को केवल उस दशा में काम
पानी में तैरना और घोड़े आदि पर चढ़ना में लाएँ, जब कि औषध वटिका अथवा चूर्ण रूप में बरती जाए। किन्तु जब मोदक, गुग्गुल
इत्यादि प्रत्वेक काम त्याग देना चाहिए। वा० और श्रोषधीय पाक प्रभृति का उपयोग किया
सू० अ०६ जाए नब शीतल व उष्ण जल अथवा उष्ण अनुपार्श्व सरितका anuparshvasaritkaदुग्ध को अनुपान रूप से व्यवहार में लाया
सं० स्त्री० ( Collateral Fissure ). जाए । सभी औषधीय वृतों में चवन्नी भर शर्करा
भनुपालुः anupāluh-सं० पु. अनपदेशज बोलू योजित कर लगभग एक छटांक अोष्ण दुग्ध
पानीयालुक, अन भालू । रा० नि० व० ७। के साथ सेवन करें। बहुत से घी बिना शर्करा
See-Pániyáluh. के भी उपयोग में आते हैं। (२) प्राष्टांग हदय से अनुपान
कामनपुष्पः anupushpah-सं० पु. ( . ) संक्षिप्त वर्णन ।
शरतण-सं० । सरपत--हिं० । Penreed. "विपरीतं यदनस्य गुणैः स्याद विरोधि च"।
grass ( Saccharum sara.) श० वा० सू० अ०६ । श्लो०५१ ।
च० । (२) खङ्गतृण । (३) बेतसः। Com.
mon cane ( Calamus rotong.) खाश पदार्थों के विपरीत गुण वाले अविकारी द्रव्यों का अनुपान सदा ही हितकारी है।
अनुप्त anupta-हिं० वि० [सं०] जो बोया न
___गया हो। बिना बोया हुश्रा। जैसे रूक्ष का स्निग्ध, स्निग्ध का रूक्ष, गरम को उंडा, डे का गरम, खट्टे का मीठा, मीठे का अनुप्रस्थ anuprastha-सं० पु. (Horizo. खट्टा इत्यादि ! परन्तु ऐसा विपरीत सम्बन्ध ntal, transverse) समस्थ, ब्यत्यस्थ, न होना चाहिए। जैसा दूध और खटाई का |
श्राड़ा, चौड़ाई की रुख । मुस्तनरिज़, अरीज़ होता है।
- ०। अनुपान का कर्म-अपान से उत्साह, |
अनुप्रस्थ वृहदन्त्रम् anuprastha-vrihad तृप्ति शरीर में अन्न रस का संचार, दृढ़ता, अन्न.
antram-सं० क्ली संघात, शिथिलता, निता और अन्न का परि.
अनुपस्थ वृहत् अन्त्र anuprastha-vrihat) पाक होता है।
antra-contato ( Trans.
verse-colon ) वृहद् अन्त्र का समस्थ या अनुपान के अयोग्य रोग-जत्र (ग्रीवा
पाड़ा भाग । वृहद् अन्त्र का वह भाग जो यकृत् और वक्षःस्थल) के ऊपर वाले अंगों में होने घाले रोगों में अनुपान अहित होता है । जैसे
सक पहुँच कर बांई ओर को मोड़ खाता है और
नाभि प्रदेशमें होता हुश्रा पीहा तक पहुँचता है। श्वास, खांसी, उरःक्षत, पीनस, अत्यन्त गाने वा बोलने के सम्बन्ध में वा स्वरभेद में अनुपान
वृहद् अन्त्रका दूसरा भाग जो व्यत्यस्त या भाड़ा
(चौड़ाई की रुरत ) यकृत् से प्लीहा की ओर हितकारी नहीं है।
जाता है । कोलन मुस्तरिज़-अ०। अनुपान के अयोग्य रोगी-जिनका शरीर विसर्पादि रोगों से किन्न हो गया हो अथवा अनुप्राशन anuprashana-हि० संज्ञा पु. जो नेत्र और क्षत रोगों से पीड़ित हों उन्हें पीने
ना | भक्षण । के पदार्थ स्याग देने चाहिए । स्वस्थ और अनुबन्धः anubandhah-सं० पु. (.) अस्वस्थ सभी लोगों को पान और भोजन के वात, पित्त और कफ में से जो अाधान हो।
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