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अण्डखरवजाः
अण्डखरबूज़ा प्रलेप है । यह वृश्चिक देश की निश्चित औषध । है। बीज भी इस हेतु उतने ही लाभप्रद हैं। पक्क फल परिवर्तक है और इसका निरन्तर सेवन आदती मलावरोध को नष्ट करता है। यह अजीण तथा रकाश में हित है। उबालने के पश्चात् इसमें निम्बु स्वरस तथा शर्करा सम्मिलित करने से इसकी उत्तम चटनी प्रस्तुत होती है। इसका शुष्क किया हया एवं लवण-योजित फल प्लीहा शोथ तथा यकृत शोथ को कम करता :-है। इसके अपक्व फलसी कड़ी प्रस्तुत कर. स्तन्यजनन प्रभाव हेतु नियाँ सेवन करती हैं। वातवेदनायों में इसके पत्र को उष्ण जल में अथवा अग्नि पर गरम करके वे नास्थल पर बाँधते हैं। पनियों को कुचलकर इसको पुल्टिस बाँधने से कहा जाता है कि श्लैपदिक शोथ कम होता है। इस हेतु इसके फल द्वारा निष्कासित प्रगाढ़ दुग्ध का ३ से ४ 'प्रेन (१ से २ रत्ती) की मात्रा में वटी रूप में प्रान्तरिक उपयोग होता है । ई० मे० मे
.. अण्डस्वरबूज़ा का दूधिया रस और तनिर्मित सत्व (पेपोन)
दूधिया रस ___ प्राप्ति व निर्माण-विधि-अपक्व ( वा अर्द्धपक) फल में लम्बाई की रुख बारम्बार चीरा दें। इस प्रकार जब पर्याप्त दुग्ध निकल पाए तब उसे एकत्रितकर सैण्डवाथ (बालुकाकुण्ड)पर रख मन्द अग्नि द्वारा शुष्क करें। इस प्रकार एक मन्द श्वेत व का चूण प्राप्त होगा। प्रान्तरिक रूप से प्रयुज्य यह एक उत्तम औषध है। पूर्ण वयस्क मनुष्यको इसकी १ या २ ग्रेन की मात्रा शर्करा वा दुग्ध के साथ देनी चाहिए । इसी प्रकार की एक औषध "फिलर्स पेपीन" के नाम से | बिकता है । स्वाद अप्रिय होने के कारण इसका टिंक्चर उत्तम नहीं होता । आवश्यकता होने पर बालकों अथवा स्त्रियों के लिए इसके चूर्ण का शर्बत बनाया जा सकता है। अजीण में यह अत्यन्त गुणदायक है।" लक्षण तथा पेपोन से इसकी तुलना
क्षारीय, अग्लीय, तथा न्युट्रल (उदासीन) घोल में विलायक रूपसे यह पेप्सीनके समान एक एन्जाइम है। यह मांसीय एल्ब्युमेन का प्रबल पाचक एवं वास्तविक पेप्टोज का निर्माण करता है और पेप्सीन के समान दुग्ध को जमा देता है । पेन्सीन से यह इस बात में भिन्न है कि बिना अम्ल योग के तथा अधिक उत्ताप पर एवं थोड़े काल में यह प्रभाव करता है। फाइबिन तथा अन्य मत्रजनीध पक्षों का विलाब होने के कारण वह मांस को गलाता है। बना हुधा रस पेप्सीन से रासायनतः इस बातमें मित्र है कि उबालने पर वह सलस्थाया (अधःपातित) नहीं होता | और मन्यु रिक बोराइड (पारदहरिद), प्रायोडीन ( नैलिका ) एवं सम्पूर्ण खनिजाम्लों द्वारा तलस्थायी हो जाता है। इस बात में वह पेप्सीन के समान है कि न्युट्रल एसी. टेट ऑफ लेड द्वारा वह, तलस्थायी हो जाता है तथा कॉपर सल्फेट ( ताम्रगन्धेत ) और भावन • मोराइड (लौह हरिद ) के साथ. तलस्थायी नहीं होता।
पेपोन या पेपेयोटीन (Papain or papayotin) प्राप्त व लक्षण - यह एक एल्ल्युमीनीय वा पाचक खंभीर वा अभिषव (प्रभावात्मक सत्व) है जो अपक्व अण्डखळूजा के दूधिया रसको मद्यसार (ऐलकुहॉल) के साथ तलस्थायी करने से प्राप्त होता है । यह एक श्वेत वर्ण का विकृताकार ( अमूर्त ) श्राभूत चूर्ण है। जो ७५% शुद्ध मद्यसार, जल एवं ग्लीसरीन (मधुरीन) में विलेय होता है । इसमें प्राबिज द्रव्यों के पचाने की शक्रि है। एक ने पीन २.. प्रेन ताजे दबाए हुए रक फाइमिन को पचा
देगा।
नोट-यद्यपि अण्ड सबूजा के अपक्क रस से निकाल कर शुष्क किए हुए दूधिया रस को अंग्रेजी में पेपेयोटीन कहते हैं तथापि पेपीन और पेपेयोटीन अधुना पर्याय रूप से व्यबहत होते हैं।
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