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अञ्जनम्
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अञ्जनम् सुरमा है । यह सीसक और गन्धक को मूषा में | वसा इनकी बहुत वार भावना देने से सुरमा शुद्ध उपण करने से भी प्राप्त हो सकता है । यही सी- होता है। सक की कृष्ण भस्म है। कदाचित् इसी भाँति के (५) स्रोताजन और सौवीराजन की सुरमाके लक्षण को जनाब शेख़र्रईस बूअलीसीना त्रिफला के काढ़े वा भाँगरे के रस में श्रौटाने से ने मालूम करके इ..समद अर्थात् सुरमा को मृत शुद्धि होती है। सीसा का जौहर लिखा है ।
. (६) नीलाअन के चूर्ण को १दिन जंभीरी सरमो-यह भी काले सरमे का एक भेद है के रस में खरल कर धूप में सुखा दें तो यह जिसमें गंधक जस्ता (यशद) के साथ मिला हश्रा शद्ध और समस्त रोगों में प्रयोज्य हो जाता है। होता है । यह अधिक कठोर होता है।
इसी प्रकार गेरू, कसीस, सुहागा, कौड़ी, मैन___ सुरमहे अस्फ़हानी-सम्भव है शुद्ध होता सिल एवं मुरदासंग की शुद्धि होती है। हो । परन्तु, डॉक्टर पावल महाराय अपनी पुस्तक
(७) सर्व प्रथम केले के तनेमें गढ़ा बनाएँ। "एकोनोमिकल प्रोडक्ट्स अॉफ पाब" के पृष्ट ११
पुनः अञ्जन का एक टुकड़ा उसमें रखकर ऊपर पर लिखते हैं कि सुरमहे अस्फ़हानी के
से वही केले का छिलका भर दें और इसे २१ नमूने की परीक्षा करने पर इसमें लौह का मि- दिन तक इसी प्रकार रहने दें। इसके बाद निश्रण पाया गया। वह पेशावर के निकटस्थ काल कर इसी प्रकार नीम के वृक्ष में उतने ही बाजौर नामक स्थान के खनिज सुरमा को शुद्ध
दिन तक रक्ख । इससे अजन की विशेष शुद्धि सुरमा बतलाते हैं और पर्वतीय सुरमा तथा प. होती है। नेत्र के लिए तो यह अमृत समान आब के किसी किसी अन्य स्थान के सुरमा को
गुणदायी है। अशुद्ध बतलाते हैं।
सलायह सुरमह सफेद सुरमा-वास्तवमें खटिक धातु का (1) रक सुरमा १ तो०, काली हड़ जो एक योग विशेष अर्थात् काबोनेट अफ लाइम बहुत छोटी हों ४ तो०, पृथक् बारीक करके ( संगमरमर ) है। श्रायुर्वेद के अनुसार इसको मिलाएँ और एक दिन तक खूब रगड़ कर सौवीराम्जन कहते हैं। इसको लोग भूल से रख दें। सुरमा समझ कर उपयोग में लाते हैं, किन्तु यह गुण-अर्श भेद और नासूर के लिए परीबिलकुल सुरमा नहीं | तोड़ने पर भीतर से यह 'क्षित है। . सुरमा के सदृश चमकदार होता है। प्रस्तु, इसी मात्रा-१ रत्ती से ४ रत्ती तक सवेरे, शाम सादृश्य के कारण यह सुरमा खयाल किया को किञ्चित् गुड़ के साथ मिलाकर खिलाएँ । जाता है।
इसके पश्चात् रोज सुबह को गोघृत और पानी । अञ्जन शुद्धि
पिलाएँ। ५० दिन तक लगातार सेवन करते (१) सब अञ्जनों की शुद्धि भाँगरे के रहें। पथ्य-दो प्याज या चौलाई का साग स्वरस में खरल करने से होती है ।
और घी चुपड़ी हुई गेहूँ की रोटी खिलानी चा(२) सूर्यावर्त ( काला भौगरा अथवा हुल
हिए। इससे मस्से गिर जाएँगे। हुल ) के रस में खरल करने से अञ्जन शुद्ध
(मख्जन) होता है।
(२) र सुर्मा ५ तो० को निम्नलिखित (३) सब अज्जनों का चूर्ण कर एक दिन प्रोपधियों के रसमें खरल करें । यथा-त्रिफला जंभीरी के रस में भावना देकर धूप में सुखा लेने की छाल, माजू, माई, कत्था, रसवत, गूगल से उनकी शुद्धि होती है तथा वे समस्त कार्यों में प्रत्येक ५ तो०, काली हड़ बहत छोटी ६ तो०, योजनीय हो जाते हैं।
कूट कर मूली के चार सेर पानी में एक दिन रात (४) गोबर के रस, गोमूत्र, घृत, शहद तथा | तर करके एक दो जोश देकर साफ कर लें और
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