________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
अजवाइ (य) न खुरासानो
१४५
अजवाइ (य) न खुरासानी पारसीक यमानो तिक्र, गर्न, कटु, तीखी, यवों में शैथिल्पोत्पादन कर्ता, निद्रापद, अवयवों अग्निदीपन करने वाली, वृष्य तथा हल्की होती के विशेषतः प्रार्तब इत्यादिका रुद्वक व बद्धक है। त्रिदोष ( समिपात ), अजीर्ण, उदरज कृमि है। कफज कास को गुण कर्ता, खखार में रुधिर रोग,दर्द,प्रामशूल (पेचिश की ऐंजन ) तथा कफ पानेकी नाशक तथा अधिक रूक्षताकत है। प्रत्येक रोग आदि को नष्ट करती है। वै० निघ०। भाँति की वेदनाशमनार्थ इसका वाह्य उपयोग __ खुरासानी अजवायन चरपरी, रूखी, पाचक, होता है । अस्तु, तिल तेल में अकेले इसे अथवा ग्राही, गरम, नशा करनेवाली, भारी, वातकारक अन्य औषधियों के साथ पकाकर सन्धिवात, और कफनाशक है, शेष गुण अजवायन के गृध्रसी या कटि वेदना (अर्ज निसा ) तथा निक्. समान हैं। वै. निघ०।
रिस (Gout) प्रभुति में इसकी मालिश . यह बुद्धि और नेत्रको मन्द करती है, कानों में की जाती है। उक्त तैल के अधोष्ण भारीपन, कंग्रह, चित्त के चलायमान होने, कर्ण में टपकाने से कर्ण पीड़ा नष्ट होती तथा रुधिरस्राव और सर्व प्रकार की पीड़ा को है। अग्नि पर डालकर धूनी देने से अथवा नष्ट करती है । विशेषकर पाचन, प्राही, इसके क्वाथ द्वारा कुल्ली करने से दाँतों का दर्द मादक और भारी है। अभि० १ भा०।। दूर होता है । मुखहिर अर्थात् श्रवसन्नताजनक खुरासानी अजवायन का अर्क-यह
व निद्राप्रद होने के कारण यह उन्माद, पागलपन मलरोधक, पाचक और मदकारक है।
तथा अनिद्रा रोगमें प्रयुक्र है । अफीम व अजवायूनानो मतानुसार अजवायन खुरासानो यन खुरासानी दोनोंको समभाग लेकर माष समान के गुण-धर्म व प्रयोग ।
वटिका निर्मित कर उपयोग करने से बहुत नींद स्वाद-तीखी और कड़वी । प्रकृति (श्वेत) पाती है और इसका लेप पुरातन यकृत वेदना, २ कक्षामें डी और रूक्ष;(काली) ३ कक्षामें डी जरायुस्थ व्रण तथा वंक्षण वेदना को बहुत लाभ और रूक्ष है। हानिकर्ता-(सफेद) चक्कर, क. पहुँचाता है । वस्ति-शोथ, प्रोस्टेट ग्रंथि प्रदाह, माला एवम् उन्मत्तकारी है; (कालो जाति की) वस्त्यश्मरी में वेदनाशमनार्थ तथा हृदय विकारघातक है । दर्षनाशक-शहद या अनी सम- जन्य दमा और खाँसी, विशेषकर काली खाँसी भाग या न्यूनाधिक; किसी किसी ने अफीम और में इसे वर्तते हैं। नफ़ो० २ भा०, बु० मु०, पोस्त लिखा है । प्रतिनिधि - अफीम, अजवायन म० अ०। देशी, और ख़शखाश स्याह । मात्रा-(श्वेत) अजवाइन खोरासानी के सम्बन्ध में २ मासे से ३ मासे तक, (सुर्ख) २ से २॥ मासा
डॉक्टरी तथा अन्य मत तक । आधुनिक मात्रा-आधा माशासे १ मा० प्रादाहिक शोथों की वेदना शमनार्थ इसके तक।
स्वरस तथा यव के आँटे द्वारा प्रस्तुत प्रस्तर गुण, कर्म, प्रयोग-मोरमुहम्मद हुसेन इसके (पुल्टिस ) व्यवहार में आता है। इसके बीजों ताजे पत्ते के स्वरस के सूर्यतापी सत्व निर्माण का को मद्य अर्थात् ब्रांडी में पीसकर इसकी पुलटिस वर्णन करते हैं और कहते हैं कि इसके पत्तों को का संधिशोथ, शोथ युक्र छातियों एवं अण्ड में कूटकर आँटे के साथ कल्क प्रस्तुत कर उपयोग करते हैं । अर्ध ड्राम के लगभग इसके इसकी छोटी छोटी बाटियाँ बनाकर सुखा लें। बीज तथा १ ड्राम खसखास को जल एवं शहद इससे कुछ काल पर्यन्त इसमें औषधीय गुणधर्म के साथ पीसकर खाँसी तथा संधिवात प्रादि में विद्यमान रहेगा।
वेदनाशमनार्थ वर्तते हैं। जरायुस्थ वेदना में यह सब नजलानी को लाभ कर्ता, स्निग्धता इसकी वर्ति व्यवहृत है। इसके बीजों का स्वरस युक्त स्राव (भाँख की ओर ) को हरण कर्ता, अथवा तीक्ष्ण हिम चक्षुपीड़ा हरणार्थ नेत्रों में डाला सम्पूर्ण प्रकारको कण पीड़ा को शान्तिप्रद, प्रव. जाता है। घोड़ी के दुग्ध में इसके बीजों को
For Private and Personal Use Only